Hindi, asked by hetrajpadhiyar, 7 months ago

सोने का महत्व कब बढ़ जाता है ? class 10 ​

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Answered by shrutimahant
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सोने का महत्व बढ़ता है जब इस टाइप की कोई जैसे मारामारी होगी या जब से शेयर मार्केट डेमोक्रेट्स जाती है जब पेट्रोल के प्राइसेस बहुत कम हो जाता है तो सोना का भाव बढ़ जाएगा जो चीज है जो बंदा कभी भेज सकता है और अपने पास भी रखता है पूजा कर सकता है क्योंकि मान लो आपके पास पैसे बैंक में है तो बता नहीं बैंक का फेल हो जाए शेयर मार्केट में वह भी आप ऐसा निकलवा ले सकते ओके और कोई भी पंगा होता है एयरलाइन दुबिया कुछ भी हो तो पेट्रोल कीमत भी कम हो जाती है तो उस केस में सोने के भाव बढ़ जाते हैं और सोने का काफी महत्व था जैसे अभी आप देख सकते हैं करो मैं केस में सोना ₹50000 वाला

Answered by ram003369
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Answer:

सोना एक धातु एवं तत्व है। शुद्ध सोना चमकदार पीले रंग का होता है जो कि बहुत ही आकर्षक रंग है। यह धातु बहुत कीमती है और प्राचीन काल से सिक्के बनाने, आभूषण बनाने एवं धन के संग्रह के लिये प्रयोग की जाती रही है। सोना घना, मुलायम, चमकदार, सर्वाधिक संपीड्य (malleable) एवं तन्य (ductile) धातु है। रासायनिक रूप से यह एक तत्व है जिसका प्रतीक (symbol) Au एवं परमाणु क्रमांक ७९ है। यह एक अंतर्ववर्ती धातु है। अधिकांश रसायन इससे कोई क्रिया नहीं करते। सोने के आधुनिक औद्योगिक अनुप्रयोग हैं - दन्त-चिकित्सा में, एलेक्ट्रॉनिकी में।

स्वर्ण के तेज से मनुष्य अत्यंत पुरातन काल से प्रभावित हुआ है क्योंकि बहुधा यह प्रकृति में मुक्त अवस्था में मिलता है। प्राचीन सभ्यताकाल में भी इस धातु को सम्मान प्राप्त था। ईसा से 2500 वर्ष पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यताकाल में (जिसके भग्नावशेष मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में मिले हैं) स्वर्ण का उपयोग आभूषणों के लिए हुआ करता था। उस समय दक्षिण भारत के मैसूर प्रदेश से यह धातु प्राप्त होती थी। चरकसंहिता में (ईसा से 300 वर्ष पूर्व) स्वर्ण तथा उसके भस्म का औषधि के रूप में वर्णन आया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में स्वर्ण की खान की पहचान करने के उपाय धातुकर्म, विविध स्थानों से प्राप्त धातु और उसके शोधन के उपाय, स्वर्ण की कसौटी पर परीक्षा तथा स्वर्णशाला में उसके तीन प्रकार के उपयोगों (क्षेपण, गुण और क्षुद्रक) का वर्णन आया है। इन सब वर्णनों से यह ज्ञात होता है कि उस समय भारत में सुवर्णकला का स्तर उच्च था।

इसके अतिरिक्त मिस्र, ऐसीरिया आदि की सभ्यताओं के इतिहास में भी स्वर्ण के विविध प्रकार के आभूषण बनाए जाने की बात कही गई है और इस कला का उस समय अच्छा ज्ञान था।

मध्ययुग के कीमियागरों का लक्ष्य निम्न धातु (लोहे, ताम्र, आदि) को स्वर्ण में परिवर्तन करना था। वे ऐसे पत्थर पारस की खोज करते रहे जिसके द्वारा निम्न धातुओं से स्वर्ण प्राप्त हो जाए। इस काल में लोगों को रासायनिक क्रिया की वास्तविक प्रकृति का ज्ञान न था। अनेक लोगों ने दावे किये कि उन्होंने ऐसे गुर का ज्ञान पा लिया है जिसके द्वारा वे लौह से स्वर्ण बना सकते हैं जो बाद में सदैव मिथ्या सिद्ध हुए।

उपस्थिति संपादित करें

स्वर्ण प्राय: मुक्त अवस्था में पाया जाता है। यह उत्तम (noble) गुण का तत्व है जिसके कारण से उसके यौगिक प्राय: अस्थायी ही होते हैं। आग्नेय (igneous) चट्टानों में यह बहुत सूक्ष्म मात्रा में वितरित रहता है परंतु समय के साथ क्वार्ट्‌ज नलिकाओं (quartz veins) में इसकी मात्रा में वृद्धि हो गई है। प्राकृतिक क्रियाओं के फलस्वरूप कुछ खनिज पदार्थों में जैसे लौह पायराइट (Fe S2), सीस सल्फाइड (Pb S), चेलकोलाइट (Cu2 S) आदि अयस्कों के साथ स्वर्ण भी कुछ मात्रा में जमा हो गया है। यद्यपि इसकी मात्रा न्यून ही रहती है परंतु इन धातुओं का शोधन करते समय स्वर्ण की समुचित मात्रा मिल जाती है। चट्टानों पर जल के प्रभाव द्वारा स्वर्ण के सूक्ष्म मात्रा में पथरीले तथा रेतीले स्थानों में जमा होने के कारण पहाड़ी जलस्रोतों में कभी कभी इसके कण मिलते हैं। केवल टेल्डूराइल के रूप में ही इसके यौगिक मिलते हैं।

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