सोना लेखिका
के भोजन करने
के समय को
मेरी बिल्ली गोधूलि, कुत्ते हेमंत-वसंत, कुतिया फ़्लोरा, सब पहले इस नए अतिथि
को देखकर रुष्ट हुए. परंतु सोना ने थोड़े ही दिनों में सबसे गाढ़ी मित्रता कर ली। फिर
तो वह घास पर लेट जाती और कुत्ते-बिल्ली उसपर उछलते-कूदते रहते। कोई उसके
कान खींचता कोई पैर और जब वे इस खेल में तन्मय हो जाते, तब वह अचानक चौकड़ी
भरकर भागती और वे गिरते-पड़ते उसके पीछे दौड़ लगाते।
वर्षभर का समय बीत जाने पर सोना की टाँगें अधिक सुडौल हो गई और खुरों के कालेपन में चमक आ गई।
गरदन लचीली हो गई। पीठ में भराववाला-उतार-चढ़ाव और स्निग्धता दिखाई देने लगी। आँखों के चारों और खिंची
कज्जल कोर में नीचे गोलक और दृष्टि ऐसी लगती थी, मानो नीलम के बल्बों में उजली चमक हो। इसी बीच फ़्लोरा
ने भक्तिन की अंधेरी कोठरी के एकांत कोने में चार बच्चों को जन्म दिया और वह खेल के संगियों को भूलकर
अपनी नवीन-सृष्टि के संरक्षण में व्यस्त हो गई। एक-दो दिन सोना अपनी सखी को खोजती रही, फिर उसे इतने
लघु जीवों से घिरा देखकर उसकी स्वाभाविक चकित दृष्टि गंभीर विस्मय से भर गई।
एक दिन देखा, फ़्लोरा कहीं बाहर घूमने गई है और सोना भक्तिन की कोठरी में निश्चित लेटी है। पिल्ले आँट
बंद रहने के कारण ची-चीं करते हुए सोना के उदर में दूध खोज रहे थे। तब से सोना के नित्य के कार्यक्रम
पिल्लों के बीच लेट जाना भी सम्मिलित हो गया। आश्चर्य की बात यह थी कि फ्लोरा हेमंत, वसंत या गोधूनि
को तो अपने बच्चों के पास फटकने भी नहीं देती थी, परंतु सोना के संरक्षण में उन्हें छोड़कर आश्वस्त भाव
इधर-उधर घूमने चली जाती थी।
संभवतः वह सोना को स्नेही और अहिंसक प्रकृति से परिचित हो गई थी। पिल्लों के बड़े होने पर और उन
ली सेना में सम्मिलित लिया
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