सेनानी न होते हुए भी चश्मेवाले कैप्टन करते थे
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सेनानी ना होते हुए भी लोग चश्मे वाले को कैप्टन इसीलिए करते थे क्योंकि वह देश भक्त था | उसमें देश के प्रति सम्मान का जज्बा था और आपने इस जज्बे की वजह से और लंगड़ा घोड़ा आदमी जो मामूली सी फेरी लगाकर चश्मा बेचा करता था, रोज नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मूर्ति के चश्मे बदला करता था | कैप्टन ने अपना पूरा जीवन देश हित के कामों में लगा दिया था |
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चश्मे वाला कभी सेना में नहीं रहा । ना ही उसने कभी स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया। वह बेचारा तो खुद अपहाहिज था ।
परंतु वह नेता जी की मूर्ति का चश्मा बदल ता था । चश्मा अपनी तरफ लगाता था। यह सब देख कर लग ता था कि वह नेता जी का साथी अथवा फौज का कैप्टन है ।
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