स्नानोत्तीर्णः महर्षिकण्वः किम् अचिन्तयत्? (स्नान से निवृत्त महर्षि कण्व क्या सोचते हैं?)
Answers
Answered by
0
Answer:
see the attachment.......
Attachments:
Answered by
1
Answer:
hii
your answer is here !
Explanation:
स्नानोत्तीर्ण: महर्षि कण्वः अचिन्तयत् यत् “अद्य शकुन्तला पतिगृहं गमिष्यति इति विचिन्त्य मम हृदयं दुःखाक्रान्तम्, कण्ठः अन्तर्निरुद्धः अश्रुप्रवाहावरोधेन, नेत्रौ चिन्तया अचेतनत्वं जातौ। वनवासिनः मम स्नेहाधिक्येन एतादृशं विह्वलत्वम् अस्ति चेत् गृहिणः जनानां कृते आत्मजायाः वियोगजन्यं दु:खं किमर्थं न पीडामुत्पादयिष्यति” इति। (स्नान से निवृत्त महर्षि कण्व सोचते हैं कि आज शकुन्तला पतिगृह चली जायेगी। यह विचार कर मेरा हृदय दुख से आक्रांत है; आँसुओं को रोकने से कण्ठ रुक गया है, नेत्र चिन्ता से जड़ हो गये हैं। हम वनवासियों की स्नेह की अधिकता से ऐसी विह्वल दशा है तो सामान्य गृहस्थियों को पुत्रियाँ का वियोगजन्य दुख कितना कष्ट देता होगा?)
follow me !
Similar questions
English,
5 months ago
English,
5 months ago
India Languages,
10 months ago
Science,
10 months ago
Science,
1 year ago
Social Sciences,
1 year ago