सोना और लोहा इन धातुओं का वर्णन करो
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Explanation:
सोना या स्वर्ण (Gold) अत्यंत चमकदार मूल्यवान धातु है। यह आवर्त सारणी के प्रथम अंतर्ववर्ती समूह (transition group) में ताम्र तथा रजत के साथ स्थित है। इसका केवल एक स्थिर समस्थानिक (isotope, द्रव्यमान 197) प्राप्त है। कृत्रिम साधनों द्वारा प्राप्त रेडियोधर्मी समस्थानिकों का द्रव्यमान क्रमश: 192, 193, 194, 195, 196, 198 तथा 199 है। भारत के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फ़ण्डामेंटल रिसर्च के वैज्ञानिकों ने ब्लैक गोल्ड(Black Gold) नामक पदार्थ का निर्माण किया है |
सोना एक धातु एवं तत्व है। शुद्ध सोना चमकदार पीले रंग का होता है जो कि बहुत ही आकर्षक रंग है। यह धातु बहुत कीमती है और प्राचीन काल से सिक्के बनाने, आभूषण बनाने एवं धन के संग्रह के लिये प्रयोग की जाती रही है। सोना घना, मुलायम, चमकदार, सर्वाधिक संपीड्य (malleable) एवं तन्य (ductile) धातु है। रासायनिक रूप से यह एक तत्व है जिसका प्रतीक (symbol) Au एवं परमाणु क्रमांक ७९ है। यह एक अंतर्ववर्ती धातु है। अधिकांश रसायन इससे कोई क्रिया नहीं करते। सोने के आधुनिक औद्योगिक अनुप्रयोग हैं - दन्त-चिकित्सा में, एलेक्ट्रॉनिकी में।
स्वर्ण के तेज से मनुष्य अत्यंत पुरातन काल से प्रभावित हुआ है क्योंकि बहुधा यह प्रकृति में मुक्त अवस्था में मिलता है। प्राचीन सभ्यताकाल में भी इस धातु को सम्मान प्राप्त था। ईसा से 2500 वर्ष पूर्व सिंधु घाटी की सभ्यताकाल में (जिसके भग्नावशेष मोहनजोदड़ो और हड़प्पा में मिले हैं) स्वर्ण का उपयोग आभूषणों के लिए हुआ करता था। उस समय दक्षिण भारत के मैसूर प्रदेश से यह धातु प्राप्त होती थी। चरकसंहिता में (ईसा से 300 वर्ष पूर्व) स्वर्ण तथा उसके भस्म का औषधि के रूप में वर्णन आया है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में स्वर्ण की खान की पहचान करने के उपाय धातुकर्म, विविध स्थानों से प्राप्त धातु और उसके शोधन के उपाय, स्वर्ण की कसौटी पर परीक्षा तथा स्वर्णशाला में उसके तीन प्रकार के उपयोगों (क्षेपण, गुण और क्षुद्रक) का वर्णन आया है। इन सब वर्णनों से यह ज्ञात होता है कि उस समय भारत में सुवर्णकला का स्तर उच्च था।
इसके अतिरिक्त मिस्र, ऐसीरिया आदि की सभ्यताओं के इतिहास में भी स्वर्ण के विविध प्रकार के आभूषण बनाए जाने की बात कही गई है और इस कला का उस समय अच्छा ज्ञान था।
मध्ययुग के कीमियागरों का लक्ष्य निम्न धातु (लोहे, ताम्र, आदि) को स्वर्ण में परिवर्तन करना था। वे ऐसे पत्थर पारस की खोज करते रहे जिसके द्वारा निम्न धातुओं से स्वर्ण प्राप्त हो जाए। इस काल में लोगों को रासायनिक क्रिया की वास्तविक प्रकृति का ज्ञान न था। अनेक लोगों ने दावे किये कि उन्होंने ऐसे गुर का ज्ञान पा लिया है जिसके द्वारा वे लौह से स्वर्ण बना सकते हैं जो बाद में सदैव मिथ्या सिद्ध हुए।
Answer:
सोना या स्वर्ण (Gold)- अत्यंत चमकदार मूल्यवान धातु है। यह आवर्त सारणी के प्रथम अंतर्ववर्ती समूह (transition group) में ताम्र तथा रजत के साथ स्थित है। इसका केवल एक स्थिर समस्थानिक (isotope, द्रव्यमान 197) प्राप्त है।
लोहा या लोह (Iron) - आवर्त सारणी के आठवें समूह का पहला तत्व है। धरती के गर्भ में और बाहर मिलाकर यह सर्वाधिक प्राप्य तत्व है (भार के अनुसार)। धरती के गर्भ में यह चौथा सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है। इसके चार स्थायी समस्थानिक मिलते हैं, जिनकी द्रव्यमान संख्या 54, 56, 57 और 58 है। लोह के चार रेडियोऐक्टिव समस्थानिक (द्रव्यमान संख्या 52, 53, 55 और 59) भी ज्ञात हैं, जो कृत्रिम रीति से बनाए गए हैं।