सुनो, पढ़ा आर गाआ:
५. बसंत गीत
सजि आयो रे, ऋतु बसंत सजि आयो ।
अजी गाओ रे, ऋतु बसंत सजि आयो ।।
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कलि-कलि करत कलोल कुसुम मन, मंद-मंद मुस्कायो
गुन-गुन-गुन-गुन गूंजे मधुप गन मधु मकरंद चुरायो ।।
सजि आयो रे, ऋतु बसंत सजि आयो ।
अजी गाओ रे, ऋतु बसंत सजि आयो ।।
बन-बन-बाग-बाग-बगियन में, सुहनि सुगंध उड़ायो ।
ठुमकि-ठुमकि मयूरा नाचत, गीत कोयलिया गायो ।।
सजि आयो रे, ऋतु बसंत सजि आयो ।
अजी गाओ रे, ऋतु बसंत सजि आयो ।
पीली-पीली सरसों फूली, अरु बौर अमवा पे छायो ।
हरी-हरी मटर बिछौने ऊपर अमित रंग बरसायो ।
सजि आयो रे, ऋतु बसंत सजि आयो ।
अजी गाओ रे, ऋतु बसंत सजि आयो ।।
परिचय : चंद्रप्रकाश 'चंद्रजी कवि, लेखक, निर्देशक, अभिनेता, बहुप्रतिभा के धनी हैं। आपने विविध पत्र-पत्रिकाओं में ले
जन्म: ३.अक्टूबर १९५७, बुलंदशहर (उ.प्र.) रचनाएं : खयाल ऊपर और ऊपर (लघुकथा), टेलीफिल्य, गीत, बाल
प्रस्तुत गीत में कवि ने वसंत ऋतु में होने वाले परिवर्तन, प्रभाव और प्राणियों में फैले उल्लास को दर्शाया है।
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जी हाँ |
Explanation:
यह कविता कक्षा ७वी में हैं।
इस कवितापर भारी वेटेज हैं ।(in question paper)
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