Hindi, asked by gopis4749, 15 hours ago

सोना, सज्जन, साधु जन, टूटि जुरै सौ बार।दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धका दरार।।मकबिकमअति परिचय ते होत है, अरुचि, अनादर भाय।मलयगिरि की भीलनी, चंदन देत जराय।।करै बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोय।रोपै बिरवा नीम को, आम कहाँ ते होय।।रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहु।दूध कलारिन हाथ लखि, मद समुझे सब ताहु।।जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्यान।मोल करो तलवार का, पड़ा रह

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Answered by ashutoshkumar41275
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सोना, सज्जन, साधु जन, टूटि जुरै सौ बार।दुर्जन कुंभ कुम्हार के, एकै धका दरार।।मकबिकमअति परिचय ते होत है, अरुचि, अनादर भाय।मलयगिरि की भीलनी, चंदन देत जराय।।करै बुराई सुख चहै, कैसे पावै कोय।रोपै बिरवा नीम को, आम कहाँ ते होय।।रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहु।दूध कलारिन हाथ लखि, मद समुझे सब ताहु।।जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ग्यान।मोल करो तलवार का, पड़ा रह

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