सुन्दर भविष्य का स्वप्न बेचने निकला एक ठग, पहले पोत गया इतिहास के मुख पर झूठ की कालिख, बता गया इतिहास को बर्बर और असभ्य! जैसे कोई साबुन विक्रेता पहले बेचता है कीटाणुओं का भय। जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए लड़ने वाले किसी योद्धा ने नहीं ब्याही अपनी बेटी अपने से नीची जाति में कभी... वह हमेशा ढूंढता रहा अपने लिए ऊँची जाति की लड़की... जातिमुक्ति का द्वंद वस्तुतः सुन्दर स्त्री देह पाने का आंदोलन रहा... स्त्री मुक्ति पर बात करता हर पुरुष आंदोलनकारी जीवन भर ठगता रहा अपनी हर साथिन को, उसने उतनी बार संगिनी बदली, जितनी बार बदलता है साँप अपनी केंचुल वह लूटता रहा उनका प्रेम, छीनता रहा संवेदना, बेचता रहा उम्मीद... और अंततः मर गया अवसाद में डूब कर। स्त्री मुक्ति का हर नारा घोर पुरुषवादी एजेंडे की आँच पर पका है... सामाजिक समानता के हर व्यापारी ने कमाए सैकड़ों महल, और बढ़ाता रहा अंतर, गरीब और अमीर में... उसके समर्थक होते रहे दरिद्र, वह होता गया धनवान। समानता का आंदोलन वस्तुतः भेड़ से भेड़िया बनने का आंदोलन रहा। अंधविश्वास का विरोध करता हर क्रांतिकारी स्वयं हो गया अंधभक्त और उसकी बात नहीं मानने वाले हर व्यक्ति को घोषित करता गया मूर्ख... आयातित विचारों के गुलाम बन बैठे विचारक, आजीवन करते रहे सत्य का बलात्कार मुक्ति का हर आंदोलन खड़ा हुआ है धूर्तता की नींव पर... स्वतंत्रता का हर दावा नए हंटर का दावा है, ताकि नए तरीके से खींची जा सके हर गुलाम की खाल! संवेदना के आँसू कुटिल मुस्कानों के अश्लील अनुवाद भर होते हैं। सत्य के कठघरे में हर क्रांति खड़ी है निर्वस्त्र... कितनी छद्म कितनी कुरूप और नृशंस! सर्वेश तिवारी श्रीमुख गोपालगंज, बिहार।
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सुन्दर भविष्य का स्वप्न बेचने निकला एक ठग,
पहले पोत गया इतिहास के मुख पर झूठ की कालिख,
बता गया इतिहास को बर्बर और असभ्य!
जैसे कोई साबुन विक्रेता पहले बेचता है कीटाणुओं का भय।
जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए लड़ने वाले किसी योद्धा ने
नहीं ब्याही अपनी बेटी अपने से नीची जाति में कभी...
वह हमेशा ढूंढता रहा अपने लिए ऊँची जाति की लड़की...
जातिमुक्ति का द्वंद वस्तुतः सुन्दर स्त्री देह पाने का आंदोलन रहा...
स्त्री मुक्ति पर बात करता हर पुरुष आंदोलनकारी
जीवन भर ठगता रहा अपनी हर साथिन को,
उसने उतनी बार संगिनी बदली, जितनी बार बदलता है साँप अपनी केंचुल
वह लूटता रहा उनका प्रेम, छीनता रहा संवेदना, बेचता रहा उम्मीद...
और अंततः
मर गया अवसाद में डूब कर।
स्त्री मुक्ति का हर नारा घोर पुरुषवादी एजेंडे की आँच पर पका है...
सामाजिक समानता के हर व्यापारी ने
कमाए सैकड़ों महल,
और बढ़ाता रहा अंतर, गरीब और अमीर में...
उसके समर्थक होते रहे दरिद्र, वह होता गया धनवान।
समानता का आंदोलन वस्तुतः भेड़ से भेड़िया बनने का आंदोलन रहा।
अंधविश्वास का विरोध करता हर क्रांतिकारी स्वयं हो गया अंधभक्त
और उसकी बात नहीं मानने वाले हर व्यक्ति को घोषित करता गया मूर्ख...
आयातित विचारों के गुलाम बन बैठे विचारक,
आजीवन करते रहे सत्य का बलात्कार
मुक्ति का हर आंदोलन खड़ा हुआ है धूर्तता की नींव पर...
स्वतंत्रता का हर दावा नए हंटर का दावा है,
ताकि नए तरीके से खींची जा सके हर गुलाम की खाल!
संवेदना के आँसू कुटिल मुस्कानों के अश्लील अनुवाद भर होते हैं।
सत्य के कठघरे में हर क्रांति खड़ी है निर्वस्त्र...
कितनी छद्म
कितनी कुरूप और नृशंस!
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
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James Joyce
James Joyce was born in Dublin in 1882. He belonged to a Catholic family and got his education from Catholic schools. During his studies he went through a phase of religious zest, however, he rejected the Catholic Church. He was influenced was Ibsen and inspired by his views, Joyce took literary mission as a career. He was sternly against the bigotry of Phillistines in Dublin.