History, asked by rr827386, 2 months ago


सिन्ध पर विजय किसने प्राप्त किसने की थी​

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Answered by srishti539
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अरबों की सिन्ध-विजय

भारत को जिन मुसलमान आक्रमणकारियों का सबसे पहले सामना करना पड़ा, वे अरब थे।

अरबों के भारत पर हमले के प्रथम प्रमाण 636-37 ई. के आसपास मिलते हैं, लेकिन इन हमलों का उद्देश्य सिर्फ लूटमार करने तक ही सीमित था न कि राज्य-विस्तार करना।

दूसरा हमला उन्होंने किकान (सिन्ध) पर किया, लेकिन 643 के इस हमले में उन्हें सफलता प्राप्त नहीं हुई।

वस्तुतः राज्य-विस्तार की मनोभावना का अरबों में विकास तब हुआ जब 637 ई. में उन्होंने फारस पर विजय प्राप्त कर ली।

711-12 ई. में अरबों ने मुहम्मद बिन-कासिम के नेतृत्व में सिंध पर आक्रमण किया।

उस समय सिंध का शासक ब्राम्हणवंशी राजा दाहिर था।

सिंध में ब्राम्हण वंश की स्थापना चच ने की थी। दाहिर उसी का पुत्र था।

अरबों ने इस आक्रमण में देवल के बंदरगाह से प्रवेश किया।

राजा दाहिर ने उनका सामना करने के लिए पहले अपने भतीजे को भेजा, जो पराजित हो गया। तदुपरांत वह स्वयं उनका सामना करने गया, लेकिन पराजित होकर मारा गया।

इस प्रकार, सिंध पर अरबों का कब्जा हो गया।

मुहम्मद-बिन-कासिम ने राओर के युद्ध में राजा दाहिर को पराजित करने के बाद तत्कालीन सिंध की राजधानी आलोर पर कब्जा कर लिया।

इसके बाद अरबों ने मुल्तान जीत लिया।

अरबों ने सिंध के आगे भी अरब साम्राज्य के विस्तार के प्रयत्न किए, लेकिन असफल रहे।

सिंध पर लगभग 463 वर्षों तक अरबों का कब्जा रहा। 1175 ई. में शहाबुद्दीन मुहम्मद गौरी ने सिंध पर कब्जा कर लिया और इस प्रकार अरबों का सिंध पर आधिपत्य समाप्त हो गया।

सिंध में अरबों की विजय को ‘निष्फल विजय’ की संज्ञा दी जाती है, क्योंकि इस विजय के बाद भारत के अन्य किसी भाग में उन्हें सफलता नहीं मिली।

सिंध पर अरबों की विजय का कारण

प्राचीनकाल से ही भारतीय समुद्र में अरबों द्वारा किए जाने वाले व्यापार के कारण, उन्हें भारत के तटवर्ती क्षेत्रों का अच्छा ज्ञान था तथा उनकी समुद्री शक्ति भी पर्याप्त प्रभावी थी।

637 ई. की फारस-विजय ने उन्हें साम्राज्य-विस्तार के लिए प्रेरित किया।

मुहम्मद-बिन-कासिम एक कुशल और शक्तिशाली सेनापति था।

इस्लाम की मान्यताओं का भी अरब आक्रमणकारियों पर प्रभाव था, जिसके अनुसार ‘जिहाद’ को उनका धर्म बना दिया गया था।

अरबों द्वारा आक्रमण का तात्कालिक कारण यह माना जाता है कि सिंध के देवल बंदरगाह पर कुछ ईराकी जहाजों को लूट लिया गया था, जिसकी भरपाई राजा दाहिर द्वारा न किए जाने पर खलीफा ने क्रुद्ध होकर सिंध पर आक्रमण करने का निश्चय कर लिया।

कुछ भारतीय नरेशों ने अरबों को भारत में बसने के लिए प्रोत्साहित किया था।

हिन्दू धर्म में आपसी फूट थी तथा निम्न वर्ग के उपेक्षित लोगो ने धन की लालसा में इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया था।

बौद्धों तथा जाटों ने देशद्रोह कर अरबों से बड़ी मात्रा में धन प्राप्त कर उनको सहयोग दिया।

भारत आर्थिक दृष्टि से काफी सम्पन्न था, इसलिए सिंध की विजय द्वारा वे भारत में अपना साम्राज्य विस्तार करना चाहते थे।

सिंध पर ब्राम्हण वंश का शासन था, जो उदात्त एवं शांतिप्रिय शासन के लिए प्रसिद्ध था, इसलिए उसमें युद्ध कौशल तथा कट्टरता की कमी थी।

अरबों की सिंध विजय का परिणाम

राजनीतिक परिणाम

राजनीतिक दृष्टि से अरबों की सिंध-विजय इस्लाम तथा भारत के विकास में एक महत्वहीन घटना मानी जाती है।

उनकी इस विजय का राजनीति के राजतंत्रात्मक स्वरूप पर भी कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

इस समय की इस्लामी राज व्यवस्था की यह विशेषता थी कि अरब सूबेदारों ने एक सुनियोजित नीति के तहत सिंधवासियों को इस्लाम धर्म में परिवर्तित करने का एक व्यापक अभियान प्रारंभ किया, जिसका उद्देश्य मुसलमानों की संख्या बढ़ाना और इस्लाम धर्म को एक प्रबल शक्ति के रूप में स्थापित करना था।

अरबों की राजनीति धार्मिक विस्तार के मूलमंत्र पर टिकी थी। अतः, यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अरबों की सिंध-विजय का राजनीतिक परिणाम सिंधक्षेत्रीय व्यक्तियों का अस्थायी और सीमित-स्तर पर धर्म परिवर्तन करवाना रहा।

सामाजिक परिणाम

अरबों का भारत के सामाजिक स्वरूप पर कोई स्थायी प्रभाव नहीं पड़ा। फिर भी, यह कहना गलत होगा कि अरबों की विजय का हमारे सामाजिक ढांचे पर प्रभाव पड़ा ही नहीं।

पहला प्रभाव तो यह था कि भारत में पहली बार अरबों ने ही इस्लाम का बीज बोया।

स्त्रियों को बंदी बनाकर अरबों ने जबरन उनसे वैवाहिक संबंध स्थापित कर लिए।

हिंदू धर्म की उदात्त भावना को इस्लामी कट्टरवाद की चोट का सामना करना पड़ा।

गुलाम बनाने की प्रथा भी अरबों ने ही शुरू की।

सबसे उल्लेखनीय बात तो यह रही कि भारत में आरंभिक मुस्लिम बस्तियां स्थापित की गईं।

आर्थिक परिणाम

यद्यपि अरबों की सिंध-विजय से भारत की अर्थव्यवस्था पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा, तथापि क्षेत्रीय जनों की आर्थिक स्थिति में काफी गिरावट आई, क्योंकि लूट-खसोट करना अरबों की व्यावहारिक विशेषता थी।

युद्ध व्यय के लिए लूट-खसोट द्वारा ही धन एकत्र किया जाता था।

सैकड़ों निर्दोष व्यक्तियों को उनकी सम्पत्ति से सिर्फ इसलिए बेदखल कर दिया गया, क्योंकि उन्होंने इस्लाम कबूल करने से इनकार कर दिया था।

कई बहुमूल्य मूर्तियों को भी उन्होंने अपने कब्जे में कर लिया।

सिंध के हिंदुओं को जजिया देने के लिए विवश कर दिया।

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