संन्यासी के लिये इन दोनों में कोई अंतर नही था –
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सन्यासी को दुनिया के किसी व्यक्ति तथा वस्तु से लगाव नहीं रहता हैं। उसे सिर्फ मुक्ति का ही मार्ग दिखता हैं। इसलिए आम इंसानों के भांति किसी विशेष वस्तु या व्यक्ति का मोह नहीं रहता हैं। सन्यासी के लिए प्रभु को अलावा सारे वस्तु सिर्फ भौतिक जंजालों का फंदा लगता हैं।
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