सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा , सहस्त्रबाहु सम हो रिपु मोरा की रस का नाम बताए
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सुनहु राम जेहि सिवधनु तोरा , सहस्त्रबाहु सम हो रिपु मोरा”
इन पंक्तियों में ‘रौद्र रस’ प्रकट हो रहा है। जब सीता के स्वयंवर में शिव धनुष को भगवान श्रीराम तोड़ देते हैं, तो परशुराम वहाँ आ जाते हैं और धनुष तोड़ने होने के विषय में पूछने लगते हैं। तब राम विनम्रता पूर्वक उनसे धनुष तोड़ने का कारण बताते हैं। तब परशुराम क्रोधित होकर ये पंक्तियां कहते हैं, जिनका तात्पर्य यह है कि ‘सुन लो राम! जिसने भी यह शिव धनुष तोड़ा है। वह सहस्रबाहु के समान ही मेरा शत्रु है। परशुराम यह बात है क्रोधित होकर कह रहे हैं, इसलिए इन पंक्तियों में रौद्र रस प्रकट हो रहा है।
रस का स्थायी भाव क्रोध है। जब किसी अपमान के कारण या किसी बात से असहमति होने के कारण क्रोधित होकर कोई बात कही जाये तो वहाँ पर रौद्र रस उत्पन्न होता है।
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Answer:
रौद्र रस है इस पंक्ति में शुभ हो रामजी ही सुबह भी दोनों सहसवान उसन को रूपी मोरा की रस का नाम है रौद्र रस।