Hindi, asked by maazkazi3816, 11 months ago

सांप और कौवे की कहानी। Snake and Crow Story in Hindi

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Answered by Anonymous
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Answer:

Explanation:

एक वृक्ष के ऊपर एक कौवा घोंसला बना कर अपनी पत्नी के साथ रहता था। दोनों में बड़ा प्रेम था इसलिए दोनों बड़े सुख के साथ रहते थे। दोनों रोज खाने की खोज में साथ-साथ उड़ते थे, और खा-पीकर फिर साथ-साथ लौट आते थे। कुछ दिनों बाद कहीं से एक काला सांप आ गया। सांप भी वृक्ष की जड़ में बिल बनाकर रहने लगा।  

कौवी सांप को देखकर डर गई। उसने कौवे से कहा, "सांप बड़े दुष्ट स्वभाव का होता है। ना जाने कहां से आ गया है।" कौवे ने कौवी को हिम्मत बंधाई और कहा, "घबराओ नहीं, ईश्वर हम सब का रक्षक है।" कुछ दिनों पश्चात कौवी ने अंडे दिए। अंडे से बच्चे निकले। बच्चे धीरे-धीरे बड़े हुए। उछलने-कूदने लगे। कौवा और कौवी, दोनों बच्चों को बहुत प्यार करते थे।  

एक दिन बच्चों को घोसले में छोड़कर दोनों भोजन की खोज में चले गए। सन्नाटा देखकर सांप बिल से बाहर निकला। वह धीरे-धीरे वृक्ष पर चढ़ गया। उसने कौवे के घोंसले के पास जाकर उनके बच्चों को खा लिया और चुपके से वृक्ष से नीचे उतर कर अपने बिल में चला गया।  

कौवा और कौवी, दोनों जब लौटे तो घोसले में बच्चों को न पाकर वे बहुत दुखी हुए। उन्होंने आस-पास की चिड़ियों से अपने बच्चों के संबंध में पूछताछ की, पर कोई कुछ नहीं बता सका। कौवा और कौवी करते तो क्या करते ? दोनों रो-धोकर शांत हो गए। कुछ दिनों पश्चात कौवी ने फिर से अंडे दिए। अंडे से बच्चे निकले। बच्चे कुछ बड़े हुए। उछलने-कूदने लगे। कौवा और कौवी ने परस्पर सलाह की, हमें अपने बच्चों को अकेला छोड़कर नहीं जाना चाहिए। दोनों में से एक को सदा घोसले में रहना चाहिए।  

एक दिन कौवा भोजन की तलाश में चला गया। कौवी अपने बच्चों के पास घोसले में थी। चारों ओर सन्नाटा था। सांप अपने बिल से बाहर निकला और धीरे-धीरे वृक्ष के ऊपर चढ़ने लगा। कौवी ने सांप को देख लिया। वह जोर-जोर से कांव-कांव करने लगी, पर सांप के ऊपर कुछ भी असर नहीं पड़ा। वह वृक्ष पर चढ़ता ही गया और घोसले के पास जा पहुंचा।  

 

कौवी सहायता के लिए पुकारने लगी, पर उसकी सहायता के लिए कोई भी नहीं आया। सांप पहले की तरह उसके बच्चों को खाकर वृक्ष के नीचे उतर गया। कौवी करती भी करती तो क्या करती ? वह सिर पीट पीट कर रोती ही रह गई। जब कौवा लौटा तो कौवी ने रो-रोकर सांप के द्वारा बच्चों के खा जाने की बात सुनाई। कौवे की आंखों से भी आंसू निकल आए, पर उसने धैर्य से काम लिया। वह बोला, "अब रो-रोकर क्या करोगी ? जो होना था, वह हो गया है। हिम्मत रखो, थोड़ा धीरज धरो।  

कौवी रोती हुई बोली, "सांप दो बार मेरे बच्चों को खा गया। अब मैं इस वृक्ष पर नहीं रहूंगी। चलो, किसी दूसरे वृक्ष पर चलें।" कौवा बोला, "इस वृक्ष पर मेरे पूर्वज रह चुके हैं। इसे छोड़ना ठीक नहीं है। धैर्य रखकर इसी वृक्ष पर रहो। मैं सांप को मारने का उपाय करूंगा।"  

किंतु कौवे के बहुत समझाने पर भी कौवी बार-बार यही कहती रही कि किसी दूसरे वृक्ष पर चलो। आखिर कौवे ने कहा, "तुम मेरी बात नहीं मानती तो, आस-पड़ोस की चिडियों से पूछो।" कौवे और कौवी ने आस-पड़ोस की चिड़ियों से सलाह ली, तो उन्होंने ने भी कहा, "तुम दोनों को इसी वृक्ष पर रहना चाहिए। हम सभी मिलकर सांप का मुकाबला करेंगे।  

इतने पर कौवी के मन को शांति नहीं मिली। आखिर कौवा बोला, "तुम्हें इस तरह संतोष नहीं होता, तो चलो लोमड़ी मौसी के पास चलें। वह सबसे अधिक बुद्धिमान हैं। वह जो कुछ कहे, उसी के अनुसार हमें और तुम्हें काम करना चाहिए।" कौवी लोमड़ी के पास जाने के लिए राजी हो गई। कौवी को लेकर कौवा लोमड़ी के पास गया। उसने लोमड़ी को सांप द्वारा बच्चों को खाए जाने की बात सुनाकर कहा, "हम दोनों अब क्या करें ? उसी वृक्ष पर रहें या उसे छोड़ दें ?"  

लोमड़ी सोच कर बोली, "तुम दोनों कहीं मत जाओ, अपने घर में रहो। मैं तुम्हें एक ऐसा उपाय बता रही हूं जिसके अनुसार काम करने से सांप को उसके पापों का दंड मिल जाएगा। पास के तालाब पर राजकुमारियां स्नान करने के लिए आती हैं। वह अपने गहने--कपड़े उतार कर रख लेती हैं और स्नान करने के लिए पानी में घुस जाती हैं।  

कल सवेरे तुम दोनों वहीं पहुंच जाओ। राजकुमारियां जब अपने गहने रखकर पानी में घुसे, तो तुम दोनों एक-एक मोती की माला अपनी-अपनी चोंच में उठाकर भाग चलो। इतने जोर-जोर से बोलो कि नौकरों का ध्यान तुम दोनों की ओर खिंच जाए। वे मोती की माला के लिए तुम्हारा पीछा करेंगे। तुम दोनों मोती की माला लेकर अपने वृक्ष पर लौट जाओ और मालाओं को सांप के बिल में डालकर अपने घोंसले में जा बैठो। फिर देखो क्या होता है।  

कौवा और कौवी ने लोमड़ी की बात मान ली। दोनों ने दूसरे दिन वही किया जो लोमड़ी ने कहा था। दोनों कांव-कांव करते हुए एक-एक मोती की माला चोंच में उठाकर भाग चले। नौकरों ने उनका पीछा किया, पर वे दोनों वृक्ष के नीचे पहुंचकर मालाओं को सांप के बिल में डालकर अपने घोंसले में जा बैठे। नौकर भी पीछा करते हुए वृक्ष के नीचे पहुंचे। उन्होंने वृक्ष की जड़ में, बिल में मोतियों की माला देखी।  

नौकर मोतियों की माला को निकालने के लिए बिल को खोदने लगे। सांप भी बिल के भीतर बैठा हुआ था। वह छेड़छाड़ को सहन नहीं कर सका। वह फुफकार मारता हुआ बाहर निकला। सभी नौकर पहले तो डर कर भाग खड़े हुए, फिर सबने मिलकर सांप का सामना किया। एक बहुत बड़े डंडे और तलवार पड़ने से सांप मर गया।  

कौवा और कौवी दोनों प्रसन्न हुए। उन्होंने लोमड़ी के पास जाकर उसे बहुत बहुत धन्यवाद दिया। लोमड़ी ने कहा, "किसी भी दुष्ट से डरकर भागना नहीं चाहिए, बल्कि दुष्ट को दुष्टता से ही जीतने का प्रयत्न करना चाहिए।"

Answered by arnav134
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एक वृक्ष के ऊपर एक कौवा घोंसला बना कर अपनी पत्नी के साथ रहता था। दोनों में बड़ा प्रेम था इसलिए दोनों बड़े सुख के साथ रहते थे। दोनों रोज खाने की खोज में साथ-साथ उड़ते थे, और खा-पीकर फिर साथ-साथ लौट आते थे। कुछ दिनों बाद कहीं से एक काला सांप आ गया। सांप भी वृक्ष की जड़ में बिल बनाकर रहने लगा।

कौवी सांप को देखकर डर गई। उसने कौवे से कहा, "सांप बड़े दुष्ट स्वभाव का होता है। ना जाने कहां से आ गया है।" कौवे ने कौवी को हिम्मत बंधाई और कहा, "घबराओ नहीं, ईश्वर हम सब का रक्षक है।" कुछ दिनों पश्चात कौवी ने अंडे दिए। अंडे से बच्चे निकले। बच्चे धीरे-धीरे बड़े हुए। उछलने-कूदने लगे। कौवा और कौवी, दोनों बच्चों को बहुत प्यार करते थे।

एक दिन बच्चों को घोसले में छोड़कर दोनों भोजन की खोज में चले गए। सन्नाटा देखकर सांप बिल से बाहर निकला। वह धीरे-धीरे वृक्ष पर चढ़ गया। उसने कौवे के घोंसले के पास जाकर उनके बच्चों को खा लिया और चुपके से वृक्ष से नीचे उतर कर अपने बिल में चला गया।

कौवा और कौवी, दोनों जब लौटे तो घोसले में बच्चों को न पाकर वे बहुत दुखी हुए। उन्होंने आस-पास की चिड़ियों से अपने बच्चों के संबंध में पूछताछ की, पर कोई कुछ नहीं बता सका। कौवा और कौवी करते तो क्या करते ? दोनों रो-धोकर शांत हो गए। कुछ दिनों पश्चात कौवी ने फिर से अंडे दिए। अंडे से बच्चे निकले। बच्चे कुछ बड़े हुए। उछलने-कूदने लगे। कौवा और कौवी ने परस्पर सलाह की, हमें अपने बच्चों को अकेला छोड़कर नहीं जाना चाहिए। दोनों में से एक को सदा घोसले में रहना चाहिए।

एक दिन कौवा भोजन की तलाश में चला गया। कौवी अपने बच्चों के पास घोसले में थी। चारों ओर सन्नाटा था। सांप अपने बिल से बाहर निकला और धीरे-धीरे वृक्ष के ऊपर चढ़ने लगा। कौवी ने सांप को देख लिया। वह जोर-जोर से कांव-कांव करने लगी, पर सांप के ऊपर कुछ भी असर नहीं पड़ा। वह वृक्ष पर चढ़ता ही गया और घोसले के पास जा पहुंचा।

कौवी सहायता के लिए पुकारने लगी, पर उसकी सहायता के लिए कोई भी नहीं आया। सांप पहले की तरह उसके बच्चों को खाकर वृक्ष के नीचे उतर गया। कौवी करती भी करती तो क्या करती ? वह सिर पीट पीट कर रोती ही रह गई। जब कौवा लौटा तो कौवी ने रो-रोकर सांप के द्वारा बच्चों के खा जाने की बात सुनाई। कौवे की आंखों से भी आंसू निकल आए, पर उसने धैर्य से काम लिया। वह बोला, "अब रो-रोकर क्या करोगी ? जो होना था, वह हो गया है। हिम्मत रखो, थोड़ा धीरज धरो।

कौवी रोती हुई बोली, "सांप दो बार मेरे बच्चों को खा गया। अब मैं इस वृक्ष पर नहीं रहूंगी। चलो, किसी दूसरे वृक्ष पर चलें।" कौवा बोला, "इस वृक्ष पर मेरे पूर्वज रह चुके हैं। इसे छोड़ना ठीक नहीं है। धैर्य रखकर इसी वृक्ष पर रहो। मैं सांप को मारने का उपाय करूंगा।"

किंतु कौवे के बहुत समझाने पर भी कौवी बार-बार यही कहती रही कि किसी दूसरे वृक्ष पर चलो। आखिर कौवे ने कहा, "तुम मेरी बात नहीं मानती तो, आस-पड़ोस की चिडियों से पूछो।" कौवे और कौवी ने आस-पड़ोस की चिड़ियों से सलाह ली, तो उन्होंने ने भी कहा, "तुम दोनों को इसी वृक्ष पर रहना चाहिए। हम सभी मिलकर सांप का मुकाबला करेंगे।

इतने पर कौवी के मन को शांति नहीं मिली। आखिर कौवा बोला, "तुम्हें इस तरह संतोष नहीं होता, तो चलो लोमड़ी मौसी के पास चलें। वह सबसे अधिक बुद्धिमान हैं। वह जो कुछ कहे, उसी के अनुसार हमें और तुम्हें काम करना चाहिए।" कौवी लोमड़ी के पास जाने के लिए राजी हो गई। कौवी को लेकर कौवा लोमड़ी के पास गया। उसने लोमड़ी को सांप द्वारा बच्चों को खाए जाने की बात सुनाकर कहा, "हम दोनों अब क्या करें ? उसी वृक्ष पर रहें या उसे छोड़ दें ?"

लोमड़ी सोच कर बोली, "तुम दोनों कहीं मत जाओ, अपने घर में रहो। मैं तुम्हें एक ऐसा उपाय बता रही हूं जिसके अनुसार काम करने से सांप को उसके पापों का दंड मिल जाएगा। पास के तालाब पर राजकुमारियां स्नान करने के लिए आती हैं। वह अपने गहने--कपड़े उतार कर रख लेती हैं और स्नान करने के लिए पानी में घुस जाती हैं।

कल सवेरे तुम दोनों वहीं पहुंच जाओ। राजकुमारियां जब अपने गहने रखकर पानी में घुसे, तो तुम दोनों एक-एक मोती की माला अपनी-अपनी चोंच में उठाकर भाग चलो। इतने जोर-जोर से बोलो कि नौकरों का ध्यान तुम दोनों की ओर खिंच जाए। वे मोती की माला के लिए तुम्हारा पीछा करेंगे। तुम दोनों मोती की माला लेकर अपने वृक्ष पर लौट जाओ और मालाओं को सांप के बिल में डालकर अपने घोंसले में जा बैठो। फिर देखो क्या होता है।

कौवा और कौवी ने लोमड़ी की बात मान ली। दोनों ने दूसरे दिन वही किया जो लोमड़ी ने कहा था। दोनों कांव-कांव करते हुए एक-एक मोती की माला चोंच में उठाकर भाग चले। नौकरों ने उनका पीछा किया, पर वे दोनों वृक्ष के नीचे पहुंचकर मालाओं को सांप के बिल में डालकर अपने घोंसले में जा बैठे। नौकर भी पीछा करते हुए वृक्ष के नीचे पहुंचे। उन्होंने वृक्ष की जड़ में, बिल में मोतियों की माला देखी।

नौकर मोतियों की माला को निकालने के लिए बिल को खोदने लगे। सांप भी बिल के भीतर बैठा हुआ था। वह छेड़छाड़ को सहन नहीं कर सका। वह फुफकार मारता हुआ बाहर निकला। सभी नौकर पहले तो डर कर भाग खड़े हुए, फिर सबने मिलकर सांप का सामना किया। एक बहुत बड़े डंडे और तलवार पड़ने से सांप मर गया।

कौवा और कौवी दोनों प्रसन्न हुए। उन्होंने लोमड़ी के पास जाकर उसे बहुत बहुत धन्यवाद दिया। लोमड़ी ने कहा, "किसी भी दुष्ट से डरकर भागना नहीं चाहिए, बल्कि दुष्ट को दुष्टता से ही जीतने का प्रयत्न करना चाहिए।"

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