संप्रदायिक के लिए के आंदोलनों को धार्मिक सुधार आंदोलन क्यों कहते हैं
Answers
Answer:
भारत में धर्मसुधार जरूरी है लेकिन, यह यूरोप की तर्ज पर हुआ तो सुधार नहीं बिगाड़ होगा
यूरोप में हुए धर्मसुधार के 500वें वर्ष में भारत में भी धार्मिक सुधारों को लेकर नई बहस छिड़ गयी है. लेकिन भारत में धार्मिक सुधारों का सही स्वरूप क्या हो?
अव्यक्त
13 जून 2016
भारत में धर्मसुधार जरूरी है लेकिन, यह यूरोप की तर्ज पर हुआ तो सुधार नहीं बिगाड़ होगा
बर्मा की राजधानी रंगून के फित्शे चौराहे पर आठ मार्च, 1929 को 50 हज़ार से अधिक लोग इकट्ठा हुए थे. यह हुजूम महात्मा गांधी को सुनने के लिए उमड़ा था. स्वाभाविक रूप से ज्यादातर लोग बुद्धमार्गी ही थे. इसी सभा में गांधीजी ने धर्मसुधार पर यह महत्वपूर्ण बात कही थी, 'मेरे यह कहने के बावज़ूद कि मैं पक्का हिंदू हूं, श्रीलंका में बौद्धों ने अपने में से ही एक के रूप में, एक पक्के बौद्ध के रूप में मुझे अपना लिया. यदि लंका, बर्मा, चीन और जापान के बौद्ध मुझे अपना मानेंगे तो मैं इस सम्मान को खुशी के साथ स्वीकार कर लूंगा, क्योंकि हिंदू धर्म के लिए बौद्ध मत वैसा ही है, जैसा कैथोलिक धर्म के लिए प्रोटेस्टेन्ट मत है. फर्क केवल इतना है कि बुद्ध का धर्मसुधार बहुत ज्यादा प्रखर और बहुत अधिक व्यापक