Hindi, asked by Gopaloraon, 8 days ago

सांप्रदायिकता का जहर पर निबंध |​

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Answered by vijaybahadursingh432
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Answer:

साप्रदायिकता का जहर इस सीमा तक फैलता जा रहा है कि कहीं-कहीं इसने वाद-विवाद की सीमा से हटकर संघर्ष का रूप ले लिया है । आज बहुत से लोग बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के लिए दूसरों को बाध्य कर रहे हैं । इसी बल प्रयोग के परिणामस्वरूप ही सिख तथा मराठों का उदय हुआ । सांप्रदायिकता की आड़ में लोग मानवता, धर्म को भुला रहे हैं ।

Answered by podilimaneesha
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हमारा देश भारत सभी धर्मों को समान दृष्टि से देखता है । यहाँ पर जितने धमों को मानने वाले लोग रहते हैं उतने संभवत: विश्व के किसी और देश में नहीं हैं । किसी विशेष धर्म पर आस्था रखने वाले लोगों का वर्ग ‘संप्रदाय’ कहलाता है ।

किसी विशेष संप्रदाय का कोई व्यक्ति यदि अपना कोई एक अन्य मत चलाता है तो उस मत को मानने वाले लोगों का वर्ग भी संप्रदाय कहलाता है । वास्तव में सभी संप्रदायों अथवा मतों का मूल एक ही है । सभी का संबंध मानवता से है । हर धर्म मानव को मानव से जोड़ना सिखाता है ।

परंतु जो धर्म इस भावना के विपरीत कार्य करता है उसे ‘धर्म’ की संज्ञा नहीं दी जा सकती । आज कुछ लोग अपने निजी स्वार्थों को सिद्‌ध करने के लिए धर्म को संप्रदाय का रूप दे रहे हैं । प्रत्येक संप्रदाय आज अपने को श्रेष्ठ कहलाने के लिए आतुर है । इसके लिए वे किसी भी सीमा तक जाकर दूसरों को हीन साबित करना चाह रहे हैं ।

साप्रदायिकता का जहर इस सीमा तक फैलता जा रहा है कि कहीं-कहीं इसने वाद-विवाद की सीमा से हटकर संघर्ष का रूप ले लिया है । आज बहुत से लोग बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के लिए दूसरों को बाध्य कर रहे हैं । इसी बल प्रयोग के परिणामस्वरूप ही सिख तथा मराठों का उदय हुआ ।

सांप्रदायिकता की आड़ में लोग मानवता, धर्म को भुला रहे हैं । वे नन्हे-नन्हे मासूम बच्चों को भी नहीं छोड़ रहे हैं । कितनी ही माताओं की गोद से उनके बच्चे छिन गए । कितनी ही औरतें युवावस्था में ही वैधव्य का कष्ट झेल रही हैं । हर ओर खून-खराबा हो रहा है । राजनीति में लोगों के राजनीतिक स्वार्थ ने भी प्राय: सांप्रदायिकता को हथियार की तरह प्रयोग किया है ।

एक संप्रदाय से दूसरे को धर्म अथवा जाति के नाम पर अलग करके वे हमेशा से ही अपना स्वार्थ सिद्‌ध करते रहे हैं । सौप्रदायिकता की आग पर राजनीतिज्ञों ने प्राय: अपनी रोटियाँ सेंकी हैं परंतु इस सबके लिए दोषी ये राजनीतिज्ञ कम हैं क्योंकि विभिन्न संप्रदायों को हानि पहुँचाने की मूर्खता हम लोग ही करते हैं ।

हालाँकि सभी राजनीतिज्ञों को दोष देने की परंपरा अनुचित है परंतु यह सत्य है कि कुछ स्थानीय सांप्रदायिक नेतागण अपने संप्रदाय की सहानुभूति के लोभ में ओछी हरकतों को अंजाम देते रहे हैं । हमें ऐसे तत्वों से हमेशा सावधान रहना चाहिए ।

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