) सुप्तस्य सिंहस्य मुखे के न प्रविशन्ति?
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सुप्तस्य सिंहस्य मुखे मृगा: प्रविशन्ति | इसका अर्थ होता है - सभी कार्य परिश्रम से सिद्ध होते हैं न कि सोचते रहने से।
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