स्पष्ट कीजिए।
'अफसर' व्यंग्य का केन्द्रीय भाव लिखिए।
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‘अफसर’ व्यंग्य का केंद्रीय भाव...
शरद जोशी द्वारा लिखित व्यंग ‘अफसर’ का केंद्रीय भाव हमारे प्रशासनिक ढांचे में कायम रहने वाली व्यवस्था पर एक कटाक्ष है। वह प्रशासनिक ढांचा जहाँ पर केवल भ्रष्टाचार का बोलबाला है। यह हमारी व्यवस्था की कमी को दर्शाने वाला व्यंग है, जिसमें एक अफसर आता है, चला जाता है, दूसरा अफसर आता है, लेकिन व्यवस्था वैसी की वैसी ही रहती है। कुर्सियां बदलती रहती हैं, अफसर बदलते रहते हैं. लेकिन उनके चरित्र और उनकी प्रवृत्ति वैसी ही रहती है। जहां पर सब रिश्वतखोर होते हैं।
जिनको रिश्वत दिये बिना कोई काम नहीं बनता। लेखक ने अपने अपने व्यंग वालों द्वारा इसी भ्रष्टाचार से युक्त प्रशासनिक व्यवस्था पर तीखा कटाक्ष किया है। लेखक के अनुसार अवसर वर्तमान समय में बहुत महत्वपूर्ण है, लेकिन उसके साथ दोस्ती नहीं की जा सकती। उसके साथ संबंध कायम किए जा सकते हैं परन्तु उसके साथ नहीं चला जा सकता बल्कि उसके पीछे चलना पड़ता है ताकि अपना काम निकलता रहे। व्यवस्था यह कमी पहले के समय में भी कायम थी आज भी जारी है।