Hindi, asked by badripatel982, 5 months ago

स्पष्ट कीजिए की एकलव्य एक गुरूभक्त था?​

Answers

Answered by crystalprincess78
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Answer:

for short answer:- एकलव्य का मूल नाम अभिद्युम्न था। एकलव्य को अप्रतिम लगन के साथ स्वयं सीखी गई धनुर्विद्या और गुरुभक्ति के लिए जाने जाते है। पिता की मृत्यु के बाद वह श्रृंगबेर राज्य के शासक बने।

for big answer:-

आचार्य द्रोणाचार्य पाण्डव तथा कौरव राजकुमारों को अस्त्र-शस्त्र की विधिवत शिक्षा प्रदान कर रहे थे। उन राजकुमारों में अर्जुन के अत्यन्त प्रतिभावान तथा गुरुभक्त होने के कारण वे द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य थे। द्रोणाचार्य का अपने पुत्र अश्वत्थामा पर भी विशेष अनुराग था, इसलिये धनुर्विद्या में वे भी सभी राजकुमारों में अग्रणी थे, किन्तु अर्जुन अश्वत्थामा से भी अधिक प्रतिभावान थे।

एक रात्रि को गुरु के आश्रम में जब सभी शिष्य भोजन कर रहे थे, तभी अकस्मात हवा के झौंके से दीपक बुझ गया। अर्जुन ने देखा अन्धकार हो जाने पर भी भोजन के कौर को हाथ मुँह तक ले जाता है। इस घटना से उन्हें यह समझ में आ गया कि निशाना लगाने के लिये प्रकाश से अधिक अभ्यास की आवश्यकता है। अब उन्होंने रात्रि के अन्धकार में भी लक्ष्य भेदने का अभ्यास करना आरम्भ कर दिया। गुरु द्रोण उनके इस प्रकार के अभ्यास से अत्यन्त प्रसन्न हुए। उन्होंने अर्जुन को धनुर्विद्या के साथ ही साथ गदा, तोमर, तलवार आदि शस्त्रों के प्रयोग में भी निपुण कर दिया।

उन्हीं दिनों हिरण्यधनु नामक निषाद का पुत्र एकलव्य भी धनुर्विद्या सीखने के उद्देश्य से द्रोणाचार्य के आश्रम में आया, किन्तु कर्ण के समान ही निम्न वर्ण का होने के कारण द्रोणाचार्य ने उसे अपना शिष्य बनाना स्वीकार नहीं किया। निराश होकर एकलव्य वन में चला गया। उसने द्रोणाचार्य की एक मूर्ति बनाई और उस मूर्ति को गुरु मानकर धनुर्विद्या का अभ्यास करने लगा। एकाग्रचित्त से साधना करते हुए अल्पकाल में ही वह धनु्र्विद्या में अत्यन्त निपुण हो गया। एक दिन सारे राजकुमार गुरु द्रोण के साथ आखेट के लिये उसी वन में गये, जहाँ पर एकलव्य आश्रम बनाकर धनुर्विद्या का अभ्यास कर रहा था। राजकुमारों का कुत्ता भटक कर एकलव्य के आश्रम में जा पहुँचा। एकलव्य को देखकर वह भौंकने लगा। इससे क्रोधित होकर एकलव्य ने उस कुत्ते पर अपना बाण चला-चला कर उसके मुँह को बाणों से भर दिया। एकलव्य ने इस कौशल से बाण चलाये थे कि कुत्ते को किसी प्रकार की चोट नहीं लगी, किन्तु बाणों से बिंध जाने के कारण उसका भौंकना बन्द हो गया। कुत्ते के लौटने पर जब अर्जुन ने धनुर्विद्या के उस कौशल को देखा तो वे द्रोणाचार्य से बोले- "हे गुरुदेव! इस कुत्ते के मुँह में जिस कौशल से बाण चलाये गये हैं, उससे तो प्रतीत होता है कि यहाँ पर कोई मुझसे भी बड़ा धनुर्धर रहता है।"

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