संपत्ति के बिना कोई समाज कैसे कार्य कर सकता है
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संपत्ति इस संसार का एक ऐसा शब्द है जहाँ सारा संसार थम जाता है | संपत्ति हो तो सब कुछ ,संपत्ति न हो तो कुछ भी नहीं की स्थिति है | संपत्ति का अधिकार ऐसा अधिकार है जिसे भारतीय संविधान ने भी मूल अधिकारों से अधिक आवश्यक समझा और ४४ वे संविधान संशोधन द्वारा १९७८ में मूल अनुच्छेद ३१ द्वारा प्रदत्त संपत्ति के मूल अधिकार को समाप्त कर इसे अध्याय ३१ अंतर्गत अनु.३०० क में सांविधानिक अधिकार के रूप में समाविष्ट किया है | इस प्रकार यह अधिकार अब सांविधानिक अधिकार है मूल अधिकार नहीं जिसका विनियमन साधारण विधि बनाकर किया जा सकता है |
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