सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाकू की तरह होता है by रबीन्द्र नाथ टैगोर essay answer today in word 800 plz fast
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नमस्ते!!
आपका उत्तर ⤵
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'' सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाकू की तरह होता है
जिसमें सिर्फ ब्लेड है। जो भी इसका इस्तेमाल करता है उसकी उंगलियों से रक्त निकलना प्रारंभ हो जाता है । ''
इस कथन से वे यह कहना चाहते थे कि अगर हम कर्म न करके सिर्फ तर्क करेंगे तो हमे कुछ भी प्राप्त नहीं होगा और दूसरों की नज़रों मे भी हम गिर जाएंगे।
रबीन्द्र नाथ टैगोर के अनुसार जो व्यक्ति अपने जीवन में सिर्फ तर्क करते हैं उन्हें कभी सफलता प्राप्त नहीं होती ।
कहते हैं न कि गुस्सा इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है उसी प्रकार तर्क भी है।
मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए, कभी फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।
परंतु कई बार तर्क करना भी जरूरी होता है। यदि हमें कुछ गलत लगता है तो उस विषय पर तर्क करना निरर्थक नहीं होगा क्योंकि कहते हैं गलत करने वाले से बङा दोषी सहने वाला होता है।
मनुष्य दिल और दिमाग दोनों से सोचता है। कई बार हम दिल से फैसला करते हैं और कई बार दिमाग से। अगर हम दिल और दिमाग दोनों से यह निर्णय ले लें की हमें तर्क नहीं करना है तो संभवत: इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
कई बार परिस्थिति ही ऐसी हो जाती हैं की हमें न चाहते हुए भी तर्क करना पड़ता हैंं, परंतु अगर हमें सोच विचार करके इसका समाधान खोजें तो जीवन एक पुष्प जैसा हो जाएगा।
तर्क करने से बेहतर होगा कि कर्म करो।
तर्क हमें सिर्फ गिराता है, उठाने का कार्य तो कर्म कायम है।
रबीन्द्र नाथ टैगोर जी ने एक बङी ही अच्छी बात कही है -
'' आइए हम यह प्रार्थना न करें की हमारे ऊपर खतरे न आएं, बल्कि यह प्रार्थना करें की हम उनका निडरता से सामना कर सकें । ''
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आशा है आपको उत्तर पसंद आया होगा।
धन्यवाद । ✌✌
आपका उत्तर ⤵
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'' सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाकू की तरह होता है
जिसमें सिर्फ ब्लेड है। जो भी इसका इस्तेमाल करता है उसकी उंगलियों से रक्त निकलना प्रारंभ हो जाता है । ''
इस कथन से वे यह कहना चाहते थे कि अगर हम कर्म न करके सिर्फ तर्क करेंगे तो हमे कुछ भी प्राप्त नहीं होगा और दूसरों की नज़रों मे भी हम गिर जाएंगे।
रबीन्द्र नाथ टैगोर के अनुसार जो व्यक्ति अपने जीवन में सिर्फ तर्क करते हैं उन्हें कभी सफलता प्राप्त नहीं होती ।
कहते हैं न कि गुस्सा इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन है उसी प्रकार तर्क भी है।
मनुष्य को कर्म करते रहना चाहिए, कभी फल की चिंता नहीं करनी चाहिए।
परंतु कई बार तर्क करना भी जरूरी होता है। यदि हमें कुछ गलत लगता है तो उस विषय पर तर्क करना निरर्थक नहीं होगा क्योंकि कहते हैं गलत करने वाले से बङा दोषी सहने वाला होता है।
मनुष्य दिल और दिमाग दोनों से सोचता है। कई बार हम दिल से फैसला करते हैं और कई बार दिमाग से। अगर हम दिल और दिमाग दोनों से यह निर्णय ले लें की हमें तर्क नहीं करना है तो संभवत: इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है।
कई बार परिस्थिति ही ऐसी हो जाती हैं की हमें न चाहते हुए भी तर्क करना पड़ता हैंं, परंतु अगर हमें सोच विचार करके इसका समाधान खोजें तो जीवन एक पुष्प जैसा हो जाएगा।
तर्क करने से बेहतर होगा कि कर्म करो।
तर्क हमें सिर्फ गिराता है, उठाने का कार्य तो कर्म कायम है।
रबीन्द्र नाथ टैगोर जी ने एक बङी ही अच्छी बात कही है -
'' आइए हम यह प्रार्थना न करें की हमारे ऊपर खतरे न आएं, बल्कि यह प्रार्थना करें की हम उनका निडरता से सामना कर सकें । ''
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