सिर होते हैं पर उसमें विचार और बुद्धि नहीं होती लेखक ने ऐसा क्यों कहा??
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महानगरों में भीड़ होती है, समाज या लोग नहीं बसते. भीड़ उसे कहते हैं जहां लोगों का जमघट होता है. लोग तो होते हैं, उनकी छाती में हृदय नहीं होता. सिर होते हैं लेकिन उनमें बुद्धि या विचार नहीं होता. हाथ होते हैं, लेकिन उन हाथों में पत्थर होते हैं विनाश के लिए, यह हाथ निर्माण के लिए नहीं होते. यह भीड़ एक अंधी गली से दूसरी अंधी गली की ओर जाती है क्योंकि भीड़ में होने वाले लोगों का आपस में कोई रिश्ता नहीं होता. एक दूसरे के कुछ नहीं लगते. सारे अनजान लोग इकट्ठा होकर विनाश करने में एक दूसरे का साथ देते हैं, क्योंकि जिन इमारतों, बसों या रेलों में यह तोड़फोड़ के काम करते हैं, वह उनकी नहीं होती और ना ही उन में सफर करने वाली उनके अपने होते हैं. महानगरों में लोग एक ही बिल्डिंग में पड़ोसी के तौर पर रहते हैं, लेकिन यह पड़ोस संबंध रहित होता है. पुराने जमाने में दही जमाने के लिए लोग जामन मांगने पर उसमें जाते थे, फ्लैट में फ्रीज है इसलिए जामन मांगने की जरूरत नहीं रही. सारा पड़ोस, सारे संबंध इस फ्रिज में फ्रीज हो गए हैं.
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