Art, asked by satyamkushwah450, 6 months ago

सारे को प्रार्थना पत्र लिखते हुए अपने ऑनलाइन​

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Answered by balveeryadav88530
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Answered by TaheniyatAnjum
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Explanation:

उचित पाठ्य सामग्री का अभाव

ज्यादातर स्कूल पुराने अपलोडेड वीडियो जगह-जगह से उठाकर बच्चों को शेयर कर रहे हैं। सामग्री पाठ्यक्रम अनुरूप न होने के कारण इसे समझने में बच्चों को परेशानी हो रही है। वैसे तो देश के कई स्कूल ऑनलाइन पढ़ाई करवा रहे हैं। लेकिन तमाम स्कूल ऐसे भी हैं जो सुविधा सम्पन्न नहीं है, ऐसे में वो ऑनलाइन पढ़ाई करवा पाने में असमर्थ हैं। वैसे भी ऑनलाइन पढ़ाई के लिए बच्चों के पास भी तो मोबाइल और लैपटॉप की व्यवस्था होनी जरूरी है। जब भारत में केवल 24 फीसदी घरों तक ही इंटरनेट की उपलब्धता है तो ऑनलाइन शिक्षा की सार्थकता पर स्वयं सवाल उठ जाते हैं।

ऐसे में ऑनलाइन शिक्षा से वंचित छात्रों के अभिवावकों का चिंतित होना स्वाभाविक है। असल में स्कूल प्रबंधन चाह रहा है कि लॉकडाउन के दौरान बच्चे शिक्षा से विमुख न हों। वो नयी क्लास के हिसाब से अपना पाठयक्रम पढ़ें। ऑनलाइन पढ़ाई में कई व्यवाहारिक दिक्कतें भी हैं, लेकिन लॉकडाउन में जब स्कूल खोलना खतरे से खाली नहीं है, ऐसे में ऑनलाइन क्लास ही बड़ा सहारा है। ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान घर में बच्चों को स्क्रीन पर घंटों बैठना पड़ रहा है। बच्चों को ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

उपकरण एवं इंटरनेट की समस्या

ज्यादातर प्राइवेट स्कूलों का शिक्षा माध्यम अंग्रेजी है जिसे स्वयं से समझना इन बच्चों के लिए बहुत मुश्किल है। दूसरी बड़ी चुनौती इन बच्चों के ऑनलाइन क्लासेस के लिए आवश्यक संशाधनों का न होना है। ऑनलाइन क्लासेस के लिए एंड्रयाड फोन/कम्प्यूटर/टैबलेट, ब्राडबैंड कनेक्शन, प्रिंटर आदि की जरूरत होती है। ज्यादातर ग्रामीण बच्चों के परिवार की आर्थिक स्थिति सही नहीं होती उसके चलते उनके पास डिजिटल क्लासेस के लिए आवश्यक उपकरण नहीं होते हैं जिसके कारण ये क्लास नहीं कर पा रहे जबकि इस समय इन बच्चों के क्लास के अन्य साथी ऑनलाइन क्लासेस के माध्यम से पढ़ाई कर रहे हैं। गिनने लायक परिवार ही ऐसे होगें जिनके पास ये उपकरण उपलब्ध होंगे।

लोकल सर्कल नाम की एक गैर सरकारी संस्था ने एक सर्वे किया है जिसमें 203 ज़िलों के 23 हज़ार लोगों ने हिस्सा लिया। जिनमें से 43% लोगों ने कहा कि बच्चों की ऑनलाइन क्लासेस के लिए उनके पास कम्प्यूटर, टैबलेट, प्रिंटर, राउटर जैसी चीज़ें नहीं है। ग्लोबल अध्ययन से पता चलता है कि केवल 24% भारतीयों के पास स्मार्टफोन है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण रिपोर्ट 17-18 के अनुसार 11% परिवारों के पास डेस्कटॉप कंप्यूटर/ लैपटॉप/नोटबुक/ नेटबुक/ पामटॉप्स या टैबलेट हैं। इस सर्वे के अनुसार केवल 24% भारतीय घरों में इंटरनेट की सुविधा है, जिसमें शहरी घरों में इसका प्रतिशत 42 और ग्रामीण घरों में केवल 15% ही इंटरनेट सेवाओं की पहुँच है।

इंटरनेट की उपयोगिता भी राज्य दर राज्य अलग होती है जैसे दिल्ली, केरल, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में 40% से अधिक घरों में इंटरनेट का उपयोग होता है वहीं बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में यह अनुपात 20% से कम है। स्कूलों द्वारा डिजिटल पढ़ाई के लिए व्हाट्सएप ग्रुप बनाये जा रहे हैं और उसमें स्कूल रिकॉर्ड में बच्चों के दिए गए नंबरों को जोड़ा जा रहा है लेकिन इन बच्चों के पास फ़ोन ही नहीं है, रिकॉर्ड में जो नम्बर होते हैं वो परिवार के किसी बड़े के होते हैं क्योंकि इन बच्चों के अपने फ़ोन तो होते नहीं हैं बल्कि कई बार ये भी होता है कि पूरे घर के लिए एक फ़ोन होता है और जिसका सबसे ज्यादा उपयोग परिवार का मुखिया करता है, या फोन में वाट्सएप ही नहीं है तो बच्चे कैसे पढ़ पायेंगे।

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