Political Science, asked by tanishatannu42, 3 months ago

सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के पक्ष एवं विपक्ष में
तर्क दीलिए?​

Answers

Answered by kumarimanisha8219
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Answer:

उन्नीसवीं सदी में लोकतंत्र के लिए होने वाले संघर्ष अकसर राजनीतिक समानता, आज़ादी और न्याय जैसे मूल्यों को लेकर ही होते थे। एक मुख्य माँग यह रहा करती थी कि सभी वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार हो।

यूरोप के जो देश तब लोकतांत्रिक व्यवस्था को अपनाते जा रहे थे वे सभी लोगों को वोट देने की अनुमति नहीं देते थे। कुछ देशों में केवल उन्हीं लोगों को वोट का अधिकार था, जिनके पास सम्पत्ति थी। अकसर महिलाओं को तो वोट का अधिकार मिलता ही नहीं था।

संयुक्त राज्य अमरीका में पूरे देश में अश्वेतों को 1965 तक मतदान का अधिकार नहीं था। लोकतंत्र के लिए संघर्ष करने वाले लोग सभी वयस्कों-औरत या मर्द, अमीर या ग़रीब, श्वेत या अश्वेत-को मतदान का अधिकार देने की माँग कर रहे थे। इसे 'सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार' या 'सार्वभौम मताधिकार' कहा जाता है।

भारत में 1950 में सार्वभौम मताधिकार की उम्र 21 थी, लेकिन 1989 में यह घटकर 18 वर्ष रह गयी।[1]

Explanation:

Answered by Jasleen0599
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सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के पक्ष एवं विपक्ष में तर्क दीलिए?​

  • वयस्क मताधिकार के पक्ष में उचित तर्क यह होगा कि यदि मतदाता व्यस्त नहीं है, पानी कम से कम 18 वर्ष पुराना नहीं है, तो वह यह नहीं सोच पाएगा कि कौन सा उम्मीदवार खड़ा है, अच्छा दिख रहा है या नहीं, किस पर उसे वोट दें। उसे नहीं पता होगा कि उसे क्या करना है, वह अपने माता-पिता या समाज के किसी भी हिस्से की आड़ में किसी को भी वोट देगा, जो एक तरह से समर्थन का कोई मतलब नहीं होगा। समाज के भत्ते को देखते हुए यह तय हो सकेगा कि कौन सा उम्मीदवार अपने गांव के विकास के लिए अपनी शिक्षा के लिए काम करेगा, इसी के आधार पर वह मतदान कर सकेगा और अपना योगदान देकर अच्छे उम्मीदवार का चुनाव कर सकेगा। समाज का विकास।
  • भारतीय संविधान में राज्य विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को अपनाया गया है, जिसमें प्रत्येक 18 वर्ष का व्यक्ति मतदान कर सकता है, लिंग भेद के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। यह समानता के सिद्धांत को बढ़ावा देता है। इसमें हर व्यक्ति बराबर कतार में अपना वोट डालता है और सभी के वोट का एक ही मूल्य होता है चाहे वह राष्ट्रपति हो या प्रधानमंत्री या आम नागरिक।
  • संज्ञा सर्व का अर्थ है 'सब' और भौमिकता का अर्थ है 'जमीन पर होने की अवस्था'। अब इसमें से अंतिम अक्षर 'ता' को हटाकर देखते हैं। हटाने पर हमारा शब्द 'भौमिक' हो जाता है, जो एक विशेषण है। इस विशेषण का अर्थ है 'वह वस्तु या विचार जो धरातल पर हो'। अब हम इसमें उपसर्ग 'सर्व' लगाते हैं। अब यह शब्द 'सार्वभौम' हो गया है, जिसका अर्थ है 'वह वस्तु या विचार जो पूरी भूमि पर मौजूद है'। अब इसमें प्रत्यय 'ता' जोड़ने से हमें 'सार्वभौमिकता' शब्द अर्थात् 'किसी वस्तु या विचार के संपूर्ण पृथ्वी पर अस्तित्व की अवस्था' की प्राप्ति होगी।

#SPJ2

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