सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार किस विचार के तहत अपनाया गया है
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सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार किस विचार के तहत अपनाया गया है :
सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार समानता के विचार के तहत अपनाया गया था।
सार्वभौमिक वयस्क अधिकार से पहले विश्व के अनेक देशों में जब लोकतंत्र जन्म ले रहा था, तब भी समाज के सभी वर्गों को वोट देने का अधिकार नहीं था। यूरोप के देशों में केवल उन्हीं लोगों को वोट देने का अधिकार था जिनके पास संपत्ति होती थी, यानी जो संपन्न होते या समाज के विशेष वर्ग के लोगों को ही वोट देने का अधिकार था। संयुक्त राज्य अमेरिका में भी अश्वेत नागरिकों को वोट देने का अधिकार नहीं था।
इसी कारण जब लोकतंत्र लोकप्रिय होने लगा तो धीरे-धीरे समाज के सभी वर्गों को समान मताधिकार की मांग उठने लगी। इसीलिये समाज के हर वर्ग के सभी वयस्कों को समान अधिकार के तहत वोट देने का अधिकार प्रदान किया गया और इसी अवधारणा के तहत सार्वभौमिक व्यस्त मताधिकार का विचार अपनाया गया।
इस सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार के विचार के तहत समाज के किसी भी वर्ग के वयस्क स्त्री अथवा पुरुष के बीच लिंग, जाति, धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा और उन्हें समान रूप से वोट करने का अधिकार प्राप्त होगा।
भारत में भी इसी सार्वभौमिक समानता की अवधारणा के तहत समाज के हर वर्ग के 18 वर्ष से ऊपर के सभी वयस्क स्त्री-पुरुषों को समान रूप से वोट करने का अधिकार प्राप्त है।