सार्वजनिक व्यय के सिद्धांतों की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए
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कर तथा सार्वजनिक व्यय के प्रभावों के बीच सन्तुलन की आवश्यकता है ताकि अधिकतम सामाजिक लाभ प्राप्त किया जा सके। डाल्टन के अनुसार अधिकतम सामाजिक लाभ का सिद्धान्त यह बताता है कि, "सार्वजनिक वित्त का सबसे अच्छी प्रणाली वह है जिसके द्वारा राज्य अपने कार्य द्वारा अधिकतम सामाजिक लाभ प्राप्त करता हैl"
In English: There is a need to balance the effects of tax and public expenditure so that maximum social benefit can be achieved. According to Dalton, the principle of maximum social benefit states that, “The best system of public finance is the one by which the state derives the maximum social benefit from its work."
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सार्वजनिक व्यय का सामाजिक कल्याण और धन के उत्पादन एवं वितरण पर गहरा प्रभाव पड़ता है। फिण्डले शिराज ने सार्वजनिक व्यय के निम्न चार सिद्धान्त बताए हैं-
(1) लाभ का सिद्धान्त : यह सार्वजनिक व्यय का आधारभूत सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त के अनुसार सार्वजनिक व्यय सम्पूर्ण समाज के लाभ को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए।
(2) मितव्ययिता का सिद्धान्त : मितव्ययिता से आशय कंजूसी करना नहीं बल्कि अनावश्यक व्ययों से बचते हुए केवल आवश्यक मदों पर व्यय करना है।
(3) स्वीकृति का सिद्धान्त : इस सिद्धान्त का अर्थ यह है कि बिना स्वीकृति के कोई भी व्यय नहीं किया जाना चाहिए। सार्वजनिक कोषों को दुरुपयोग से बचाने एवं मितव्ययिता का पालन करने के लिए व्यय की पूर्व-स्वीकृति लेना आवश्यक है।
(4) आधिक्य का सिद्धान्त : फिण्डले शिराज के अनुसार में सरकार को अपना व्यय कभी भी आय से अधिक नहीं करना चाहिए। जिस प्रकार से एक व्यक्ति अपनी आय के अनुसार अपने व्यय को निर्धारित करता है उसी प्रकार से सरकार को भी चाहिए कि वह भी अपना बजट बनाते समय इस बात का अवश्य ध्यान रखे कि घाटे की अर्थव्यवस्था की आवश्यकता न पड़े।
#SPJ3