सूर्य हरि की निरखी शोभा निमकी निमक तक जितना मात्र सूरदास के ऐसा कहने का क्या तात्पर्य है
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सूर हरि की निरखि सोभा निमिष तजत न मात॥ ... सूरदास कहते हैं कि श्रीकृष्ण की ऐसी शोभा को देखकर यशोदा उन्हें एक पल भी छोड़ने को न हुई अर्थात् श्रीकृष्ण की इन छोटी-छोटी लीलाओं में उन्हें अद्भुत रस आने लगा।
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