सूर्य से बढ़े चलो चंद्र से बढ़े चलो इन पंकितयो के मध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहते है?
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चाहे बादल गरज रहे हो, बिजलियाँ कड़क रही हों, सुबह हो या रात, कोई साथ में हो या न हो, सूर्य और चंद्रमा के समान आगे बढ़ते रहो। इसमें कवि ने पक्के इरादे के साथ आगे बढ़ने की बात की है। लगातार चलने से मुश्किल भी आसान हो जाती हैं।
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