Hindi, asked by NAITIKNAHAR, 2 months ago

सूर्य: उदयति। उद्याने अनेकानि पुष्पाणि विकसन्ति। जना: इतस्ततःभ्रमन्ति।केचन
जना: व्यायाम कुर्वन्ति।। सर्वत्र शीतल: वायु: वहति। जनानां मानसि प्रसन्नानि सन्ति।​

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Answered by raghulragavi07
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Explanation:

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः । नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ।।

भावार्थ :

मनुष्य का सबसे बड़ा दुश्मन उसमे बसने वाला आलस्य हैं । मनुष्य का सबसे बड़ा मित्र उसका परिश्रम हैं जो हमेशा उसके साथ रहता हैं इसलिए वह दुखी नहीं रहता ।

यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् । एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ॥

भावार्थ :

रथ कभी एक पहिये पर नहीं चल सकता हैं उसी प्रकार पुरुषार्थ विहीन व्यक्ति का भाग्य सिद्ध नहीं होता ।

जाड्यं धियो हरति सिंचति वाचि सत्यं , मानोन्नतिं दिशति पापमपाकरोति । चेतः प्रसादयति दिक्षु तनोति कीर्तिं , सत्संगतिः कथय किं न करोति पुंसाम् ॥

भावार्थ :

अच्छी संगति जीवन का आधार हैं अगर अच्छे मित्र साथ हैं तो मुर्ख भी ज्ञानी बन जाता हैं झूठ बोलने वाला सच बोलने लगता हैं, अच्छी संगति से मान प्रतिष्ठा बढ़ती हैं पापी दोषमुक्त हो जाता हैं । मिजाज खुश रहने लगता हैं और यश सभी दिशाओं में फैलता हैं, मनुष्य का कौन सा भला नहीं होता ।

अयं निजः परो वेति गणना लघु चेतसाम् । उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

भावार्थ :

तेरा मेरा करने वाले लोगो की सोच उन्हें बहुत कम देती हैं उन्हें छोटा बना देती हैं जबकि जो व्यक्ति सभी का हित सोचते हैं उदार चरित्र के हैं पूरा संसार ही उसका परिवार होता हैं ।

पुस्तकस्था तु या विद्या ,परहस्तगतं च धनम् । कार्यकाले समुत्तपन्ने न सा विद्या न तद् धनम् ॥

भावार्थ :

किताबों मे छपा अक्षर ज्ञान एवम दूसरों को दिया धन यह दोनों मुसीबत में कभी काम नहीं आते ।

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