Hindi, asked by rupanshrinayat1, 8 months ago

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की तोड़ती पत्थर कविता की समीक्षा कीजिए​

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Answered by Diamondz
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Explanation:

वह तोड़ती पत्थर

देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर -

वह तोड़ती पत्थर ।

कोई न छायादार

पेड़, वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार;

श्याम तन, भर बँधा यौवन,

गुरु हथौड़ा हाथ

करती बार बार प्रहार;

सामने तरु - मालिका, अट्टालिका, प्राकार ।

चड़ रही थी धूप

गरमियों के दिन

दिवा का तमतमाता रूप;

उठी झुलसाती हुई लू

रुई ज्यों जलती हुई भू

गर्द चिनगी छा गयी

प्रायः हुई दुपहर,

वह तोड़ती पत्थर ।

देखते देखा, मुझे तो एक बार

उस भवन की ओर देखा छिन्न-तार

देखकर कोई नहीं

देखा मुझे उस दृष्टि से

जो मार खा रोयी नहीं

सजा सहज सितार,

सुनी मैंने वह नहीं जो थी सुनी झंकार ।

एक छन के बाद वह काँपी सुघर,

दुलक माथे से गिरे सीकार,

लीन होते कर्म में फिर ज्यों कहा -

'मैं तोड़ती पत्थर

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