सारखी
1. गुरु गोबिंद दोऊ खड़े काके लागू पायें।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोबिंद दियौ बताय।।
2. जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहि ।
प्रेम गली अति साँकरी', तामे दो न समाहि ।।
3. काँकर पाथर जोरि कै, मसजिद लई बनाय।
ता चढ़ि मुल्ला बाँग दे, क्या बहरा हुआ खुदाय।।
4. पाहन पूजे हरि मिले, तो मैं पूजू पहार।
ताते ये चाकी भली, पीस खाय संसार।।
5. सब धरती कागद करौं, लेखनि सब बनराय।
सात समंद की मसि करौं, गुरु गुन लिखा न जाय।।
ESKAY BHAVARTH LIKHAY
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कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ: गुरू और गोबिंद (भगवान) एक साथ खड़े हों तो किसे प्रणाम करना चाहिए – गुरू को अथवा गोबिन्द को? ऐसी स्थिति में गुरू के श्रीचरणों में शीश झुकाना उत्तम है जिनके कृपा रूपी प्रसाद से गोविन्द का दर्शन करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
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