History, asked by ashokdasbundu, 4 months ago

सारना धर्म क्या है ये हिन्दू धर्म में किस प्रकार से भिन्न है​

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Answered by Anonymous
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सरना धर्म झारखण्ड के आदिवासियों का आदि धर्म है। परन्तु प्रत्येक राज्य आदिवासी ये धर्म को अलग-अलग नाम से जानते है और मानते है अर्थात जब आदिवासी आदिकाल में जंगलों में होते थे। उस समय से आदिवासी प्रकृति के सारे गुण और सारे नियम को समझते थे और सब प्रकृति के नियम पर चलते थे। उस समय से आदिवासी में जो पूजा पद्धति व परम्परा विद्यमान थी वही आज भी क़ायम रखे है। सरना धर्म दुनिया का सबसे पुराना धर्म है। सरना धर्म में पेड़, पौधे, पहाड़ इत्यादि प्राकृतिक सम्पदा की पूजा की जाती है। [1]

सरना धरम का प्रतीक-चिह्न

चित्र:Sarna worshippers following their religious rites.jpg

पूजा करते हुए सरना धरम के अनुयायी

चुंकि आदिवासी प्रकृति पूजक है, प्रकृति पूजक सरना धर्म को 'आदि धर्म' भी कहा जाता रहा है। सरना धर्म आदिवासियों में "हो", "संथाल", "मुण्डा", "उराँव" , "बेदिया" , "कुड़मी महतो" इत्यादि खास तौर पर इसको मानते हैं। जानकारी के अभाव में सरना धर्म को छोड़ कर बहुत से आदिवासी लोग ईसाई धर्म , हिन्दू धर्म और इस्लाम धर्म अपना रहे हैं। जिससे [2] जो कि आदिकाल से जिस परम्परा को मानते आ रहा है, उसे छोड़ने पर विवश हैं। सरना धर्म के अंदर अधिकतर परंपराएं प्रकृति पूजक मानी जाती है जिस प्रकार से सनातन धर्म में भी प्रकृति को पूजा जाता है, उसी प्रकार से सरना के अंदर भी आदिवासी लोग प्रकृति को पूजते हैं!

सरना धर्म संपादित करें

सरना धर्म क्‍या है ? यह दूसरे धर्मों से किन मायनों में जुदा है ? इसका आदर्श और दर्शन क्‍या है ? अक्‍सर इस तरह के सवाल पूछे जाते हैं। कई सवाल सचमुच जिज्ञाशा का पुट लिए होते हैं और कई बार इसे शरारती अंदाज में भी पूछा जाता है, कि गोया तुम्‍हारा तो कोई धर्मग्रंथ ही नहीं है, इसे कैसे धर्म का नाम देते हो ? लब्‍बोलुआब यह होता है कि इसकी तुलना और कसौटी किन्‍हीं पोथी पर आधारित धर्मों के सदृष्‍य बिन्‍दुवार की जाए।

सच कहा जाए तो सरना एक धर्म से अधिक आदिवासियों के जीने की पद्धति है जिसमें लोक व्‍यवहार के साथ पारलौकिक आध्‍यमिकता या आध्‍यत्‍म भी जुडा हुआ है। आत्‍म और पर-आत्‍मा या परम-आत्‍म का आराधना लोक जीवन से इतर न होकर लोक और सामाजिक जीवन का ही एक भाग है। धर्म यहॉं अलग से विशेष आयोजित कर्मकांडीय गतिविधियों के उलट जीवन के हर क्षेत्र में सामान्‍य गतिविधियों में गुंफित रहता है।

सरना अनुगामी प्राकृतिक का पूजन करता है। वह घर के चुल्‍हा, बैल, मुर्गी, पेड, खेत खलिहान, चॉंद और सूरज सहित सम्‍पूर्ण प्राकृतिक प्रतीकों का पूजन करता है। वह पेड काटने के पूर्व पेड से क्षमा याचना करता है। गाय बैल बकरियों को जीवन सहचार्य होने के लिए धन्‍यवाद देता है। पूरखों को निरंतर मार्ग दर्शन और आशीर्बाद देने के लिए भोजन करने, पानी पीने के पूर्व उनका हिस्‍सा भूमि पर गिरा कर देते हैं। धरती माता को प्रणाम करने के बाद ही खेतीबारी के कार्य शुरू करते हैं।

लेकिन यह पूजन कहीं भी रूढ नहीं है। कोई भी सरना लोक और परलोक के प्रतीकों में से किसी का भी पूजन कर सकता है और किसी का भी न करे तो भी वह सरना ही होता है। कोई किसी एक पेड की पूजा करता है तो जरूरी नहीं कि दूसरा भी उसी पेड की पूजा करे। दिलचस्‍प और ध्‍यान देने वाली बात तो यह है कि जो आज एक विशेष पेड की पूजा कर रहा है जरूरी नहीं कि वह कल भी उसी पेड की पूजा करे। यहॉं पेड किसी मंदिर, मस्जिद या चर्च की तरह रूढ नहीं है। वह तो विराट प्रकृति का सिर्फ एक प्रतीक है और हर पेड प्रकृति का जीवंत प्रतीक है, इसलिए किसी एक पेड को रूढ होकर पूजन करने का कोई मतलब नहीं। अमूर्त शक्ति की उपासना के लिए एक मूर्त प्रतीक की सिर्फ आवश्‍यकता-वस वह उस या इस पेड का पूजन करता है।

सरना धर्म किसी धार्मिक ग्रंथ और पोथी का मोहताज नहीं है। पोथी आधारित धर्म में अनुगामी नियमों के खूँटी से बॉधा गया होता है। जहॉं अनुगामी एक सीमित दायरे में आपने धर्म की प्रैक्टिस करता है। जहॉं वर्जनाऍं हैं, सीमा है, खास क्रिया क्रमों को करने के खास नियम और विधियॉं हैं, जिसका प्रशिक्षण खास तरीके से दिया जाता।

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