सूरदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए
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भक्ति’ शब्द की निर्मिति ‘भज्’ धातु में ‘क्विन्’ प्रत्यय लगाने से हुई है, जिसका अर्थ होता है- 'ईश्वर के प्रति सेवा भाव।' शाण्डिल्य भक्ति-सूत्र में भी यही बात दुहराई गयी है कि 'सापरानुरक्तिरीश्वरे' अर्थात 'ईश्वर में पर अनुरक्ति ही भक्ति है।' नारदभक्तिसूत्र के अनुसार- "भक्ति ईश्वर के प्रति परम-प्रेमरूपा और अमृत स्वरूप है।" सूरदास के गुरु वल्लभाचार्य ने भी भक्ति के विषय में अपना प्रकट किया है कि 'ईश्वर में सुदृढ़ और सनत स्नेह ही भक्ति है।'
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