सूरदास की भक्ति का स्वरूप क्या है ?
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- सूर की भक्ति मुख्यता सख्य भक्ति है ।
- बालीलाओं के वर्णन में वात्स्लय भाव के साथ साथ सखा भाव की भक्ति है.
- भक्ति शब्द की व्युत्पत्ति 'भज्' धातु से हुई है,अर्थात् श्रद्धा और प्रेमपूर्वक इष्ट देवता के प्रति आसक्ति।
- सूरदास जी बड़े ही प्रेमी और त्यागी भक्त थे। इनकी मानस पूजा सिद्ध थी। श्री कृष्ण लीलाओं का सुंदर और सरस वर्णन करने में ये अद्वितीय थे। गुरु की आज्ञा से इन्होंने श्रीमद्भागवत की कथा की पदों में रचना की। इनके द्वारा रचित ‘सूरसागर’ में श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध की कथा का अत्यंत सरस तथा मार्मिक चित्रण है।
- सूरदास जी की भक्ति भावना में जिस माधुर्य भाव को स्थान मिला है,वह मुख्य रूप से लीलाओं पर आधारित है।
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