Hindi, asked by ranaaniket351, 4 months ago

सूरदास की भवित भावना का संक्षेप में विवेचन कीजिए।​

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Answered by deepaksinha744
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Answer:

Let's start follow me.

Explanation:

सूर की भक्ति मुख्यता सख्य भक्ति है. बाललीलाओं के वर्णन में वात्स्लय भाव के साथ साथ सखा भाव की भक्ति है. कृष्ण गोपिकाओं के संयोग वियोग में माधुर्य भक्ति है. सूर की भक्ति भावना में जिस माधुर्य भाव को स्थान मिला है,वह मुख्य रूप से लीलाओं पर आधारित है. . हिंदी साहित्य के भक्तिकाल के सगुन भक्तिधारा के कृष्णा भक्ति शाखा के एक श्रेष्ट कवी है सूरदास। वे वल्लभाचार्य के शिष्य थे. सूरदास दास्य और विनय के पद गाते थे. फिर वल्लभाचार्य के आदेश से कृष्ण लीलाओं का गाना गाते रहे. सूरदास द्वारा रचित तीन रचनायें है, सूरसागर,सूरसारावली,सहित्यलहरी

उन्होंने सूरसागर में राधा और कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया है.उन्होंने कृष्ण चरित्र की उन भावात्मक स्थलों को छूआ है,जिनमे उनकी आत्मा की गहरी अनुभूति प्राप्त होती है. बालक की विविध चेष्टाओं विनोदों के क्रीड़ास्थल मातृहृदय की उत्कण्डाओं अभिलाषाओं और भावनाओं के वर्णन में सूरदास हिंदी के सर्वश्रेष्ट कवी ठहरते है। वे बालमनोविज्ञान के पारखी है/ घुट्नों के बल पर चलनेवाले कृष्ण का कवि इस प्रकार चित्रण करते है,

”शोभित कर नवनीत लिए

घुटरन चलत रेनू तन मंड़ित मुँह दति रेव किए ”

आचार्य द्विवेदी जी सूरदास को स्वयंवाय प्राप्त बालक कहा है.

सूर की भक्ति भावना का मेरुदंड पुष्टिमार्गीय भक्ति है. उनकी सिद्धंद्ध तो वल्लभाचार्य के शुद्धाद्वेदवाद है. उन्होंने ब्रह्म माया जीव सृष्टि की रचना अदि का वर्णन किया है.

सूर की भक्ति मुख्यता सख्य भक्ति है. बाललीलाओं के वर्णन में वात्स्लय भाव के साथ साथ सखा भाव की भक्ति है. कृष्ण गोपिकाओं के संयोग वियोग में माधुर्य भक्ति है. सूर की भक्ति भावना में जिस माधुर्य भाव को स्थान मिला है,वह मुख्य रूप से लीलाओं पर आधारित है. संत कवियों की तरह सूर की भक्ति भावना में भी समन्वय की भावना हम देख सकते है.

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