सूरदास का मन कहा सुख पाता है। पंछी और
है। पंछी और अहाज से
मतलब क्या है?
उनका
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Answer:
मन पंछी उडि जइहें,
जा दिन मन पंछी उडि जइहें।
ता दिन तेरे तन तरुवर के,
सबहिं पात झरि जइहें।।
सूरदास जी का यह भजन मुझे बहुत प्रिय है। आश्रम में होने वाले रविवार के सत्संग में कई बार इस भजन पर चर्चा हो चुकी है। सूरदास जी ने मानव जीवन की एक ऐसी सच्चाई इस भजन में बयान की है, जिसे कोई भी मनुष्य झुठला नहीं सकता है। सूरदास जी अपने मन के साथ साथ संसार के सभी मनुष्यों को समझाते हुए कहते हैं कि हे मन! शरीर से जिस दिन जीवात्मा रूपी पंछी बाहर निकल जायेगा, उस दिन शरीर रूपी वृक्ष के सभी पत्ते झड जायेंगे अर्थात हे मनुष्यों! आप अपने शरीर, अपने सम्बन्धियों और अपनी जमीन-जायदाद व् पद-प्रतिष्ठा को लेकर जो भी अहंकार अपने मन में पाल रखे हो वो सब अहंकार रूपी पत्ते जीव रूपी पंछी के शरीर के बाहर निकलते ही झड जायेंगे। किसी की मृत्यु पर अक्सर हम कहतें हैं कि फलां व्यक्ति का निधन हो गया है अर्थात मरने वाला व्यक्ति अब निर्धन या धनहीन हो गया है, उसके पास अब कुछ भी शेष नहीं बचा है। एक शब्द और किसी के मरने पर प्रयोग होता है कि फलां नाम के व्यक्ति चल बसे। इसका अर्थ हुआ कि इस शरीर से बाहर निकल कर कहीं और बसने के लिए वो व्यक्ति चल दिया है। जीवात्मा के शरीर से बाहर निकलते ही हमारा सब अहंकार यहीं धरा रह जायेगा। अत:हर मनुष्य को अहंकार रूपी सबसे बड़ी बीमारी से बचना चाहिए।
घर के कहहिं वेगहि काढो,
भूत भये कोऊ खइहें।
जा प्रीतम सो प्रीति घनेरी,
सोऊ देखि डरी जइहें।
मन पंछी उडि जइहें,
जा दिन मन पंछी उडि जइहें।।
मानस में कहा गया है कि- “सुर नर मुनि सबहि की यही रीति, स्वारथ लागी करहिं सब प्रीति।” सब अपने स्वार्थ के कारण स्वार्थपूर्ति हेतु एक दुसरे से प्रेम करते हैं। जो व्यक्ति कोल्हू के बैल की तरह जीवन भर अपने परिवार के लिए खटता रहा उसके शरीर छोड़ने के बाद उसके वही परिवार वाले कहते हैं कि इसके मृत शरीर को जितनी जल्दी हो घर के बाहर निकालो, कहीं ऐसा न हो इसकी आत्मा यहीं भूत बनकर रह जाये और घर के लोगों को खाना शुरू कर दे अर्थात मरने के बाद यहाँ रहकर घर के लोगो को कहीं हानि न पहुंचाए। जीवन भर अपने परिवार की सेवा करने का ये प्रतिफल मिलता है। यहाँ पर मेरा अपना विचार है कि मरने के बाद लोग प्रेत रूप में रहते जरुर हैं, परन्तु जो व्यक्ति जीते जी किसी का अहित नहीं किया है, वो मरने के बाद प्रेत बनकर भी किसी का अहित नहीं
Explanation:
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