सूरदास के पद-3
भावाथ-इन पँितय म गोपयाँ कहती ह क कृ"ण उनके %लए
हा(रल क) लकड़ी ह। िजस -कार हा(रल प.ी लकड़ी के टुकड़े
को अपने जीवन का सहारा मानता है उसी -कार 3ी कृ"ण भी
गोपय के जीने का आधार ह। गोपयो ने मन, कम और वचन
से नंद बाबा के पु; कृ"ण को अपना माना है। सोते जागते बस
का<हा क) ह= रट लगी रहती है। गोपयाँ उ>व के संदेश को
कड़वी ककड़ी बताती ह, िजसे @वीकार नह=ं कया जा सकता।
गोपयाँ उ>व से कहती ह क योग नाम का रोग तो हमने पहले
कभी ना सुना न भोगा। ये तो उनको %सखाओ िजनका मन
चंचल है अथात मन ि@थर नह=ं है। हमारा मन तो 3ी कृ"ण के -ेम म Cढ और ि@थर है।
Eदए गए पद व उसके भाव को पढ़कर GनHन%लIखत -Jन के उKतर द=िजए-
1. GनHन शNद के अथ छाँEटए -
जकर= स ु NयाPध कर= GतनEहं
मन चकर=
रोग, उनको, भोगा, वह, िजनका मन
ि@थर नह=ं रहता, रटती रहती ह
2. गोपय ने हा(रल प.ी क) तुलना @वयं से य क) है?
3. -@तुत पद के आधार पर गोपय क) योग - Cि"टकोण के बारे म साधना के -Gत %लखने का -यास
क)िजए?
4. -@तुत भावाथ म से आप कतनी Tयाएँ ढूँढ सकते ह? उ<ह %लIखए।
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दिस टाइप ऑफ स्टार्टिंग विद रमेश अंडर द इमेजेस ऑन दिवाली यूजिंग द प्रॉपर्टी ऑफ एसिडिटी नहीं मालूम तेरे को क्या मालूम मेरे को भी नहीं मालूम
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