सूरदास के तीसरे पद में अलंकार विपरीत कीजिए| कृपया बताएं
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सूरदास के तीसरे पद में अलंकार विपरीत निम्नलिखित हैं:
- इनमें गोपियों का निर्मल कृष्ण-प्रेम प्रकट हुआ है। वे कृष्ण की दीवानी हैं। उनका प्रेम अनन्य है, संपूर्ण है। और अनूठा है।
- गोपियाँ गाँव की चंचल, अल्हड और वाचतुर बालाएँ हैं। वे चुपचाप आँसू बहाने वाली नहीं अपितु अपने भोले-निश्छल तर्को से सामने वाले को परास्त करने की क्षमता रखती हैं।
- भ्रमरगीत में व्यंग्य, कटाक्ष, उलाहना, निराशा, प्रार्थना, गुहार आदि अनेक-अनेक मनोभाव तीखे तेवरों के साथ प्रकट हुए हैं।
- इसमें योग और प्रेम मार्ग का द्वंद्व दिखाया गया है।
- प्रेम के सम्मुख योग-साधना को तुच्छ दिखलाया गया है।
- इसमें कृष्ण के ज्ञानी मित्र उद्धव को निरुत्तर, मौन और भौंचक्का-सा दिखाया गया है।
- ये पद संगीत की दृष्टि से बहुत मनोहारी हैं। हर पद पहले गाया गया है, फिर लिखा गया है। ये शास्त्रीय रागों पर आधारित हैं।
- इनमें ब्रजभाषा की कोमलता, मधुरता और सरसता के दर्शन होते हैं। श्रृंगार रस के अनुरूप शब्द कोमल बनपड़े हैं।
- इनकी भाषा अलंकार-युक्त है। जो भी अलंकार आए हैं, वे सहज जनजीवन से आए हैं। उनका प्रयोग स्वाभाविक है। कहीं-कहीं अलंकार न के बराबर हैं तो भी सरसता में कोई कमी नहीं आई है। ऐसे अलंकारहीन पदों में सूरदास की रसमयी भावना ही आकर्षण का कारण है।
- इन पदों में कृष्ण परदे के पीछे रहते हैं। गोपियाँ ऊधौ के सामने खुलकर अपना उलाहना प्रकट करती हैं।
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