सूरदास प्रभु कामधेनु तजि, छेरी कौन दुहावै।।
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सूरदास, प्रभु कामधेनु तजि छेरी कौन दुहावै॥ भावार्थ :- यहां भक्त की भगवान् के प्रति अनन्यता की ऊंची अवस्था दिखाई गई है। जीवात्मा परमात्मा की अंश-स्वरूपा है। उसका विश्रान्ति-स्थल परमात्माही है , अन्यत्र उसे सच्ची सुख-शान्ति मिलने की नहीं|
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