संस्कार और भावना सारांश
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जब माँ को अविनाश की बीमारी, उसकी पत्नी द्वारा की गई सेवा और उसकी जानलेवा बीमारी की सूचना मिलती है तब पुत्र-प्रेम की मानवीय भावना का प्रबल प्रवाह रूढ़िग्रस्त प्राचीन संस्कारों के जर्जर होते बाँध को तोड़ देता है। माँ अपने बेटे और बहू को अपनाने का निश्चय करती है।
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संस्कार और भावना सारांश |
Explanation:
संस्कार और भावना एक एकांकी है जिसे विष्णु प्रभाकर जी ने लिखा है। इस एकांकी में भारत के हिंदू परिवार के पुराने संस्कारों से फसी हुई रूढ़िवादिता और आधुनिक परिवेश में बड़े होते बच्चों के बीच संघर्ष को दिखाया गया है। इस एकांकी में अविनाश ने एक भी जाती है महिला से व्यास विवाह किया और इनके विवाह का किसी ने समर्थन नहीं किया। अविनाश की माँ अविनाश के इस विवाह के सबसे ज्यादा विरोध में थी और इसी के चलते उन्होंने इसे अपने घर से भी निकाल दिया।अब माँ अपने छोटे बेटे अतुल और उसकी पत्नी उमा के साथ ही रहती थी पर बड़े बेटे से अलग रहने पर उसे कष्ट पहुंचता है।
जब एक बार माँ को पता चला कि अविनाश को प्राणघातक हैजा की बीमारी हुई और उसकी बहू ने अपने पति अविनाश को प्राण देकर बचा लिया और अब वे स्वयं बीमार है परंतु अविनाश उसे बचा नहीं सकता। ऐसा जान पड़ने पर अविनाश की की माँ का हृदय मातृत्व की भावना से भर उठा। माँ यह भी अवश्य जानती है कि यदि बहू को कुछ हो गया तो अभी आज भी नहीं बचेगा।
इस समय पुत्र के प्रति प्रेम की मानवीय भावना का बल प्रवाह प्राचीन संस्कारों के ख़त्म होते बांध को तोड़ देता है और माँ अपने बेटे और बहू को अपने घर लाने की ठान लेती है|
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