सांस्कृतिक रूचि किसे कहते हैं ?
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मनुष्य सामाजिक प्राणी है और समूहों में रहता है। विश्व के समस्त जीवधारियों में केवल वही संस्कृति का निर्माता है। इस विशेषता का मूल कारण है भाषा। भाषा के ही माध्यम से एक पीढ़ी की संचित अनुभूति भविष्य की पीढ़ियों को मिलती है। प्रत्येक पीढ़ी की संस्कृति का विकास होता है। संस्कृति परिसर का वह भाग है जिसका निर्माण मानव स्वयं करता है। ई. बी. टाइलर के अनुसार संस्कृति उस समुच्चय का नाम है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, नीति, विधि, रीति-रिवाज़ तथा अन्य ऐसी क्षमताओं और आदतों का समावंश रहता है जिन्हें मनुष्य समाज के सदस्य के रूप में मानता है।
सांस्कृतिक मानवशास्त्री उन तरीकों का अध्ययन करता है जिससे मानव अपनी प्राकृतिक एवं सामाजिक स्थिति का सामना करता है, रस्म रिवाजों को सीखता और उन्हें एक पुश्त से अगली पुश्त को प्रदान करता है। भिन्न-भिन्न संस्कृतियों में एक ही साध्य के कई साधन हैं। पारिवारिक संबंधों का संगठन, मछली पकड़ने के फंदे तथा जगत् के निर्माण के सिद्धांत प्रत्येक समाज में अलग-अलग है। फिर भी प्रत्येक समाज में जीवन कार्य-कलाप सुनियोजित है। आंतरिक विकास या बाह्य संपर्क के कारण परंपरा के स्थिर रूप भी बदलते हैं। व्यक्ति एक विशेष समाज में जन्म लेकर उन रस्म-रिवाजों को ग्रहण करता है, व्यवहार करता है और प्रभावित करता है जो उसकी सांस्कृतिक विरासत हैं। सांस्कृतिक मानव शास्त्र के अंतर्गत ऐसे सारे विषय आते हैं।