संस्कृत की स ध्वनि फारसी में किस रूप में पाई जाती है
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संस्कृत की 'स' ध्वनि का उच्चारण फारसी 'ह' हो जाता है।
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संस्कृत की 'स' ध्वनि का उच्चारण फारसी 'ह' हो जाता है।
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’संस्कृत’ शब्द का अर्थ है — संस्कार की हुई भाषा। यह शब्द ’सम’ पूर्वक ’कृ’ धातु से बना हुआ है। संस्कृत और वैदिक भाषा एक दूसरे से पर्याप्त भिन्नता रखती हैं। यह एक निश्चित सिद्धांत है कि बोलचाल की भाषा और साहित्य-रचना की भाषा एक दूसरे से बहुत भिन्नता रखती हैं। जिस युग में वेद साहित्य की रचना हुई, उस युग में साहित्यिक अनुष्ठान की भाषा वैदिक भाषा थी और बोलचाल की थोड़ी उससे कम परिष्कृत एवं व्याकरण के नियमों से कम जकड़ी हुई भाषा-लोकभाषा — बोलचाल की भाषा थी। वैदिक भाषा का ठीक उच्चारण भी एक बड़ी साधना की अपेक्षा करता है अत; केवल तप:पूत ऋषिगण ही उसका सस्वर उच्चारण कर सकते थे। इसी भाषा में उन्होंने अपने अन्तःकरण में प्रतिभासित होने वाले आध्यत्मिक तत्त्व एवं ईश्वरीय ज्योति का प्रभाव निबद्ध किया है। धीरे-धीरे समय की गति के साथ तत:पूत ऋषियों का अभाव हो ग्या और उन्हीं के साथ वैदिक भाषा का भी ’साहित्यिक मरण’ हो गया अर्थात वैदिक भाषा में साहित्य युग का सृजन युग की प्रमुख प्रवृत्ति न रहा। अब जनसाधारण के भली-भांति समझने वाली एवं उनके द्वारा बोलॊ जाने वाली लोकभाषा में साहित्य की रचना होने लगी। लोकभाषा को साहित्य-सर्जन के उपर्युक्त बनाने के लिये उसे व्याकरण के नियमों में बाँधकर तथा अन्य प्रकार से भी शिष्ट एवं सभी प्रकार की भावाभिव्यक्ति के योग्य बनाने के लिए संस्कृत किया गया। संस्कार की नई लोकभाषा अथवा बोलचाल की भाषा लौकिक संस्कृत कहलाने लगी। कालान्तर में लौकिक शब्द का लोप हो गया और इसका नाम ’संस्कृत’ पड़ा। यास्क ने बोलचाल की भाषा को केवल भाषा कहा है
संस्कृत की स ध्वनि फारसी में किस रूप में पाई जाती है
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