संस्कृतीकरण और समाजकरण में हम किस प्रकार विभेद कर सकते हैं? व्याख्या कीजिए।
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संस्कृतिकरण व समाजीकरण में विभेद
संस्कृति मनुष्य के जीवनशैली से जुड़ा व्यवहार है। संस्कृति मनुष्य की जीवन शैली, उसके आचरण, उसके व्यवहार, उसकी वेशभूषा, उसके खानपान, उसकी भाषा और उसके उत्सव-त्योहारों को मिलाकर बनाई गई एक संपूर्ण जटिल प्रक्रिया है। संस्कृति में ये सारे संदर्भ शामिल होते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी संस्कृति के हस्तांतरण को संस्कृतिकरण कहा जाता है। हर समाज की एक अपनी संस्कृति होती है।
एक विशाल समाज में कई तरह की संस्कृति हो सकती हैं। संस्कृति मनुष्य के दैनिक जीवन का व्यवहार है और इस व्यवहार को अपनाने की प्रक्रिया संस्कृतिकरण कहलाती है। संस्कृतिकरण से मनुष्य के जीवन में विविधता आती है। वो सभ्य बनता है। समाजीकरण के लिए संस्कृतिकरण भी बहुत आवश्यक है।
सामाजिकरण मनुष्य के आसपास के उस परिवेश को कहते हैं, जिसमें मनुष्य जन्म लेता है और पलता बढ़ता है। संसार में आते समय मनुष्य की दशा पशु के समान होती है। समाजीकरण की प्रक्रिया के अंतर्गत ही व सभ्य और सांस्कृतिक बनता है। यही प्रक्रिया उसका समाजीकरण कहलाती है। समाजीकरण में मनुष्य समाज सामाजिक शिष्टाचार की बातें सीखता है संस्कृति सीखता है, सभ्यता सीखता है।
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समाजीकरण के मुख्य कारकों का वर्णन कीजिए।