संस्कृति सेतु की संज्ञा किसे दी जाती है
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साहित्य की आम धारणाओं के अनुसार किसी भी भाषा में लिखी गयी लिपिबद्ध सामग्री को किसी दूसरी भाषा में ज्यों का त्यों बिना उसके मूल तथ्यों से छेड़-छाड़ किये लिखा जाना ही अनुवाद-कर्म कहलाता है ! अनुवाद-कर्म के संदर्भ में यह आम धारणा जितनी सहज और सपाट नजर आती है वास्तविकता के धरातल पर इसके मायने उतने ही बहुआयामी हैं ! अनुवाद-कर्म का दायरा सिर्फ साहित्य की तमाम विधाओं और बहु-भाषाओं में अनुवादक की निपुणता तक सीमित नहीं है ! वास्तविक तौर पर अगर देखा जाय तो अनुवाद-कर्म एक राष्ट्रीय कर्म है जो कभी एक राष्ट्र की संस्कृति को दूसरे राष्ट्र की संस्कृति से जोड़ने का काम करता है तो कभी एक समाज को दूसरे समाज के साथ जुडने के लिए प्रेरित करता है ! सीधे-सपाट शब्दों में अगर कहा जाय तो संकुचित और शिथिल पड़े साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संपदाओं को विस्तार देने का एकमात्र माध्यम अनुवाद ही है ! साहित्य में सृजन और रचनाकर्म के समानांतर या उससे एक कदम आगे बढ़कर ही अनुवाद की भूमिका है ! सृजन महज किसी रचना अथवा कृति को मूर्त रूप देता है जबकि अनुवाद की भूमिका उस सृजन और बहु-संस्कृतियों के बीच समन्वय-सेतु बनकर उस रचनाकर्म को गतिशील बनाने की होती है !
संस्कृति सेतु की संज्ञा अनुवाद को दी जाती है।
- अनुवाद का अर्थ है जैसा एक भाषा मद लिखा हुआ हो उसे वैसा ही अन्य दूसरी भाषा में लिखना।
- सेतु का अर्थ है पुल या जोड़ने वाला। अतः अनुवाद इसलिए सेतु कहा गया है क्योंकि एक भाषा जानने वाला व्यक्ति अनुवाद के माध्यम से दूसरी भाषा में लिखी हुई या कहीं हुई बात समझ सके।
- आनुवाद को अंग्रेजी में ट्रांसलेशन कहते है।
- भारत में विभिन्न भाषाएं बोली जाती है। सभी लोगो को ये सारी भाषाएं तो बोलनी आती नहीं। उसका उपाय अनुवाद से निकला ।
- पुराने ज़माने के अधिकांश काव्य व ग्रंथ संस्कृत में लिखे हुए थे। जानकर या साहित्यकार जो हिंडिव संस्कृत दोनों भाषाओं के ज्ञाता थे उन्होंने संस्कृत का हिंदी में अनुवाद कर दिया ।
- दक्षिण भारत में हिंदी बोली बहुत कम प्रयोग में लाई जाती है। वह के लोग दक्षिण भारतीय भाषा समझते है , कई लोग अंग्रेजी भी समझते है किन्तु हिंदी भाषी बहुत कम है ऐसी स्थति में जिसे दोनों भाषाएं आती है वे समझ देते है।
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