संस्कृत
संधि
इति +उक्त्वा
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इति +उक्त्वा=इत्युकत्वा
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स्वर संधि के प्रकार और उदाहरण - संस्कृत व्याकरण :
स्वर वर्ग के मेल के कारण स्वर वर्णों में जो विकार उत्पन्न होता है उसे स्वर-सन्धि कहते हैं। इसके निम्नलिखित ५ भेद हैं।
कार्य + आलय: = कार्यालयःविद्या + आलय = विद्यालयः ।राम + अयनम् = रामायणम् ।।अवलोक्य + अचिन्तयत् = अवलोक्याचिन्तयत्लोक + अपवादः = लोकापवादः ।महा + अनुभाव: महानुभावः ।
मही + ईश: = महीशःमहत्त्व + आकांक्षी = महत्त्वाकांक्षीसेवा + आश्रम = सेवाश्रमः ।महा + आलय: = महालयः ।दण्ड + अग्रम् = दण्डाग्रम्देव + आत्मा = देवात्मा ।
Explanation:
स्वर संधि के प्रकार और उदाहरण - संस्कृत व्याकरण :
स्वर वर्ग के मेल के कारण स्वर वर्णों में जो विकार उत्पन्न होता है उसे स्वर-सन्धि कहते हैं। इसके निम्नलिखित ५ भेद हैं।
१. दीर्घ-सन्धि (अक: सवर्ण दीर्घः)दो समान स्वरों को मिलाकर एक दीर्घ स्वर हो जाता है।
आ ई ऊ दीर्घ हैं (अ + अ = आ आ अ आ आ आ आ अ आआ) इसी प्रकार इ + इ = ई तथा उ + ऊ = ऊ आदि।
उदाहरणदक्षिण + अरण्ये = दक्षिणारण्ये = अ + अ = आअधि + ईश्वर: अधीश्वरः । = इ + ई = ईनदी + ईश: = नदीशः ।भानु + उदय: = भानूदयः ।पितृ + ऋणम् = पितॄणम् ।श्री + ईश = श्रीशः
२. गुण-सन्धि (आद्गुण:)यदि अ वर्ण (अ या आ) के बाद इ या ई रहे तो दोनों को मिलाकर ए हो जाता है। यदि अ वर्ण के बाद उ या ऊ रहे तो दोनों को मिलाकर ओ हो जाता है, और यदि अ वर्ण के बाद ॠ हो तो दोनों मिलकर अर हो जाता है।(ए ओ अर् गुण जानिए अई.ए. आईए अउ ओ अ ऋ अर् क्रम से)उदाहरण