सीस मुकुट, कटि काछनी, कर मुरली उर माला
यहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारी लाल।।
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श्रृंगार रस में निष्णात कवि बिहारीजी के इस दोहे में वे अपने इष्ट (प्रभु या ईश्वर का वह स्वरूप जिस पर आपकी सर्वाधिक श्रद्धा हो ) श्रीकृष्ण से अनुनय – विनय करते हुए उद्धृत कर रहे है कि “ सिर पर मोर का मुकुट, कमर में {पीताम्बर (पीले वस्त्र की)} काछनी ( ऐसी छोटी धोती जिसके दोनों लौंग (सिरे) पीछे खोसे जाते है | हाथ में मुरली (बंसी) और हृदय पर (मोती की) माला धारण करके - हे बिहारीलाल (श्रीकृष्ण का एक नाम ) , इस बाने से ,अर्थात इस सजधज से - मेरे मन में सदा वास करो । वस्तुत: वे श्रीकृष्ण से प्रार्थना कर रहे है कि आपकी यह छबि (झाँकी) मेरे हृदय में सदैव बसी रहे |
bihari ye kahana chahte Hain ki jab Krishna seer per mukut Kamar per Kale dhage mein moti peruae gale ka mala pant samay vaisa mukhya hamesha hamare Maan mein aaye