संस्मरण विधा से आप क्या समझते हैं? इसके विभिन्न तत्वों पर प्रकाश डालिए।
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Answer:संस्मरण के अंग अथवा तत्व
संस्मरण के तत्त्व की संपूर्ण जानकारी
अतीत की स्मृति
संस्मरण अतीत पर आधारित होता है इसमें लेखक अपने यात्रा , जीवन की घटना , रोचक पल , आदि जितने भी दुनिया में रोचक यादें होती है , उसको सहेज कर उन घटनाओं को लिख रूप में व्यक्त करता है। जिसे पढ़कर दर्शक को ऐसा महसूस होता कि वह उस अतीत की घटना से रूबरू हो रहा है उसको आत्मसात कर रहा है। किंतु संस्मरण को रेखाचित्र , जीवनी , रिपोर्ताज , यात्रा आदि से अलग महत्व दिया गया है।
आत्मीय एवं श्रद्धापूर्ण अन्तरंग सम्बन्ध
जब तक लेखक आत्मीयता से किसी स्मृति अतीत को याद कर अंकित नहीं करेगा तब तक संस्मरण प्रभावशाली नहीं हो सकता। इसके साथ ही आवश्यक है कि किसी श्रद्धेय पुरुष या चरित्र के प्रति श्रद्धा भाव, जो मानव-मात्र को प्रेरणा दे सके।किसी अद्भुत क्षण को याद कर भी उस पल को भी लिख सकता है।
प्रामाणिकता
संस्मरण विधा में कल्पना का कोई स्थान नहीं होता क्योकि कल्पना का समावेश होते ही संस्मरण की विधा नष्ट हो जाता है। इस विधा में कल्पना के लिए कोई खास जगह नहीं होती।
उन्हीं घटनाओं का वर्णन होता है जो जीवन में घट चुकी हैं और प्रामाणिक हैं।
वैयक्तिकता
संस्मरण की महत्वपूर्ण विशेषता वैयक्तिकता मानी जाती है। इसका सहारा लिए बिना संस्मरण नहीं लिखा जा सकता। संस्मरण में लेखक के अपने जीवन में किसी न भुला सकने वाली घटना का वर्णन होता है। वह घटना को हु बहु पाठक के समक्ष रखता है जिसे पढ़कर पाठक को उस घटना को करने का मौका मिलता है।
क्या आप जानते हैं ?
संस्मरण बहुत ही लचकदार विधा है। इसके तत्त्व और गुण अन्य अनेक विधाओं में मिल जाते हैं। बहुत समय तक रेखाचित्र, जीवनी, रिपोर्ताज आदि विधाओं और संस्मरण को एक समझा जाता रहा। संस्मरण और रेखाचित्र एक-दूसरे के साथ कहीं-कहीं इस तरह जुड़े कि एक-दूसरे के पर्याय माँ लिए गए। महादेवी वर्मा की ‘स्मृति की रेखाएं’ इसका ज्वलंत उदहारण है। ‘स्मृति’ शब्द जहाँ उस कृति को संस्मरण की ओर ले जा रहा है वहीं ‘रेखाएं’ रेखाचित्र विधा की ओर।
जीवन के खंड विशेष का चित्रण
जीवनी में सम्पूर्ण जीवन का चित्रण न करके कुछ घटनाओं का विवेचन होता है। लेखक अपने जीवन की किसी घटना विशेष या संपर्क में आए हुए व्यक्ति विशेष के चरित्र के महत्वपूर्ण पक्ष की झांकी पेश कर जीवन के खंडरूप या किसी एक पक्ष का ही चित्रण करता है।
चित्रात्मकता
संस्मरण की एक विशेषता होती है की वह जितनी चित्रात्मक होगी संस्मरण उतना ही सफल होगा ,क्योकि चित्र मानव मष्तिष्क पर अधिक प्रभाव डालती है वह मष्तिष्क में अमित छाप छोड़ती है। लेखक चुन-चुनकर शब्दों का प्रयोग कर आलंबन का चित्र प्रस्तुत करता है। वह इस प्रकार विवेचन करता है कि चित्र सहज ही बनने लगते हैं।
कथात्मकता
संस्मरण कथात्मक साहित्य विधा है। यह कथा काल्पनिक न होकर सत्य पर आधारित होती है। कथा का ताना-बाना जीवन की घटनाओं से बुना जाता है और पाठक के साथ सहज तादात्म्य हो जाता है।
तटस्थता
तटस्थता भी संस्मरण की अनिवार्य शर्त है। लेखक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह स्वयं को महिमामंडित करने की प्रवृति से दूर रहकर जीवन में घटित सत्य को सामने लाए, भले वह सत्य स्वयं के लिए कितना ही कटु क्यों न हों?
हिंदी के संस्मरणकारों में पद्म सिंह शर्मा को इस विधा का पहला लेखक माना जाता है।
आचार्य शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’, इस क्षेत्र के बड़े नाम हैं। महादेवी वर्मा हिंदी संस्मरण-साहित्य में मील का पत्थर हैं। इनके प्रारंभिक संस्मरण ‘कमला’ पत्रिका में प्रकाशित हुए। ‘पथ के साथी’, ‘मेरा परिवार’, इनके संस्मरण संकलन हैं। हालाँकि आत्मीयता की गहनता और चित्रात्मक शैली ने भ्रम पैदा किए हैं और इन्हें संस्मरणात्मक रेखाचित्र कहा जाना चाहिए। किन्तु निश्चित तौर पर महादेवी अपने आप में संस्मरण का स्वर्णिम इतिहास हैं।
हिन्दी की साहित्यिक पत्रिकाओं ने बुजुर्ग लेखकों से संस्मरण लिखवाने में बहुत तत्परता दिखाई है।
वस्तुतः पत्रकार, समालोचक, साहित्यकारों के सामानांतर इस विधा को खुशबू देने वालों में अनेक राजनीतिज्ञ, क्रांतिकारी, समाज-सुधारक भी हैं जिनके मार्मिक संस्मरणों का अपना इतिहास है। इनमें भारत के प्रथम राष्ट्रपति स्वर्गीय राजेंद्र प्रसाद, प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जैसी हस्तियाँ शामिल हैं।
इनका संस्मरण साहित्य अपने आप में प्रामाणिक इतिहास और समय का साक्ष्य है।
इस प्रकार संस्मरण में व्यक्ति विशेष से सम्बंधित विवरण के आधार पर उसकी चारित्रिक रेखाओं को जोड़ कर उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के प्रभाव को ग्रहण करने का प्रयास होता है। इसका क्षेत्र बड़ा व्यापक है।
यह किसी व्यक्ति का भी हो सकता है और वस्तु का भी। उसमें मात्र वर्णन या विवरण नहीं होता अपितु वर्ण्य विषय के साथ लेख के आत्मीय या निजी सम्बन्ध से उद्भूत प्रतिक्रियाओं का आकलन होता है।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि संस्मरण बहुत ही लचकदार विधा है।
इसके तत्त्व और गुण अन्य अनेक विधाओं में मिल जाते हैं।
बहुत समय तक रेखाचित्र, जीवनी, रिपोर्ताज आदि विधाओं और संस्मरण को एक समझा जाता रहा। इस तरह कई विधाओं के साथ संस्मरण का घालमेल होता प्रतीत होता है। किन्तु हिंदी साहित्य के विशाल फलक पर संस्मरण विधा ने अपनी छोटी-सी विकास यात्रा में पर्याप्त प्रगति की है। साहित्य-रसिकों का रुझान धीरे-धीरे इस विधा की ओर बढ़ रहा है। अतः संस्मरण का भविष्य आशा और आत्मीयता के मध्य गोते खाता एक निश्चित दिशा की ओर बढ़ रहा है।
निष्कर्ष कहा जा सकता है कि अत्याधुनिक होने पर भी संस्मरण विधा आज हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण स्थान की अधिकारिणी बन गई है यह रेखाचित्र से भी लोकप्रियता प्राप्त कर चुकी है भविष्य में इसके विकास की अच्छी संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता।
que -- संस्मरण से आप क्या समझते हैं
Ans- संस्मरण स्मृति अथवा याददाश्त पर आधारित लेखन है जिसमें लेखक अपनी स्मृतियों के आधार पर किसी व्यक्ति अथवा घटना का वर्णन करता है इसके माध्यम से व्यक्ति या घटना को हमारे सामने इस प्रकार शब्दों के माध्यम प्रस्तुत करता है जिससे वह चित्र भारती हमारे सामने आते हैं
संस्मरण से आप क्या समझते हैं
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