‘सीस पगा न झगा तन में प्रभु,’ पिंक्ति का क्या अर्थ िै?
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हे प्रभु !द्वार पर एक दुबला पतला ब्राह्मण खडा है ।
उसके माथे पर पगडी नहीं और नहीं शरीर पर कुर्ता ।
पता नहीं कौन हैं । कहा का है । काफी समय से वो यहाँ का वैभव देखकर चकित हो रहा हैं । वह आपके महल का पता पूछ रहा है।
वह अपना नाम 'सुदामा ' बता रहा है ।
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