सीस पणा न अँगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसे केहि ग्रामा।
धोती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानह को नहिं सामा।।
(CBSE NCERT CLASS 8th HINDI CHAPTER 12)
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सुदामा चरित’ – व्याख्या –
काव्यांश -1
सीस पगा न झगा तन में, प्रभु! जाने को आहि बसै केहि ग्रामा।
धोती फटी-सी लटी दुपटी, अरु पाँय उपानह को नहिं सामा।
द्वार खड़ो द्विज दुर्बल एक, रह्मो चकिसो वसुधा अभिरामा।
पूछत दीनदयाल को धाम, बतावत आपनो नाम सुदामा।
सीस – सिर
पगा – पगड़ी
झगा – कुरता
तन – शरीर
द्वार – दरवाजा
खड़ो – खड़ा है
द्विज दुर्बल – दुर्बल ब्राहमण
रह्मो चकिसो – चकित
वसुधा – धरती
अभिरामा – सुन्दर
पूछत – पूछना
दीनदायल – प्रभु कृष्ण
धाम – स्थान
प्रसंग- प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य पुस्तक ‘वसंत भाग-3’ में संकलित ‘नरोत्तम दास जी’ द्वारा रचित काव्य ‘सुदामा चरित’ से लिया गया है। इसमें श्री कृष्ण के बचपन के मित्र सुदामा अपनी पत्नी के आग्रह (कहने पर) पर कुछ आर्थिक सहायता पाने की आशा में उनकी नगरी द्वारका पैदल जा पहुँचे हैं। कवि ने उसी समय के दृश्य का वर्णन किया है।
व्याख्या- उपुर्युक्त पंक्तियों में कवि कहते हैं कि जब सुदामा कृष्ण के महल के सामने खड़े थे, तब द्वारपाल ने महल के अंदर जा कर श्री कृष्ण को बताया कि हे प्रभु! बाहर महल के द्वार पर एक गरीब व्यक्ति खड़ा हुआ है। बहुत ही दयनीय अवस्था में है और वह आपके बारे में पूछ रहा है। उसके सिर पर न तो पगड़ी है और न ही शरीर पर कोई कुरता है। पता नहीं वो किस गांव से चल कर यहाँ तक आया है। उसने ऐसा कुछ नहीं बताया है। वह फटी हुई धोती और गमछा पहने हुए है। उसके पैरों में जूते भी नहीं हैं। द्वारपाल आगे कहता है कि दरवाजे पर खड़ा हुआ गरीब कमजोर सा ब्राहमण हैरान हो कर पृथ्वी और महल के सौन्दर्य को निहार रहा है। वह द्वारिका नगरी को देखकर बहुत ही हैरान है वह सुन्दर महलों को बहुत ही हैरानी की दृष्टि से देख रहा है। वह दीनदयाल अर्थात आपका निवास स्थान पूछ रहा है और अपना नाम सुदामा बता रहा है।