संसार के सभी देशों में शिक्षित व्यक्ति की सबसे पहली पहचान यह होती है कि वह अपनी मातृभाषा में दक्ष हो या नहीं, किंतु अंग्रेजी में जिसकी दक्षता असंदिग्ध हो । संसार के अन्य देशों में सुसंस्कृत व्यक्ति वह समझा जाता है जिसके घर अपनी भाषा की पुस्तकों का संग्रह हो और जिसे बराबर यह पता रहे कि उसकी भाषा के अच्छे लेखक व कवि कौन है तथा समय-समय पर उनकी कौन सी कृतियाँ प्रकाशित हो रही है। भारत में स्थित दूसरी है यहाँ पर घर में साज-सज्जा के आधुनिक उपकरण तो होते हैं किंतु अपनी भाषा की कोई पुस्तक या पत्रिका दिखाई नहीं पड़ती। यह दुरावस्था भले ही किसी ऐतिहासिक प्रक्रिया का परिणाम है किंतु यह सुदशा नहीं दुरवस्था ही है और जब तक यह दुरवस्था कायम है हमें अपने आप को सही अर्थों में शिक्षित और सुसंस्कृत मानने का ठीक-ठाक न्याय संगत अधिकार नहीं है। निर्देश - प्रश्न-1 से 5 उपरोक्त गद्यांश पर आधारित है। उपर्युक्त गद्यांश मे एतिहासिक
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hi
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