संसार में परिवर्तन की अपेक्षा के लिए स्वयं परिवर्तित करना अनिवार्य।
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इस संसार में कुछ भी अपरिवर्तनशील नहीं है। सब कुछ नश्वर और क्षणभंगुर है। परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जो परिवर्तन को और अनित्यता को समझता है, वस्तुत: वही ज्ञानी है। जीव, जगत और ब्रrा को सही तरीके से परिभाषित करने की क्षमता भी ज्ञानी-ध्यानी, ऋषि-मुनियों में ही होती है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में संदेश देते हैं कि इस अनित्य जगत में देह को पाकर मनुष्य को इसे समझते हुए विषय-वासनाओं के दलदल में नहीं फंसना चाहिए।ज्ञानी ही है, जो ऋतुओं के अनुकूल यज्ञ को सफल कर लेता है। ज्ञानी ही है, जो बाधाओं में व्यवधानों में मार्ग ढूंढ़ निकालता है।
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