संतौं भाई आई
आई ग्याँन
की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ाँनी, माया रहै न बाँधी।।
हिति चित्त की द्वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्ना छाँनि परि वर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।।
जोग जुगति करि संतौं बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी।
कूड कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाणी।।
आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जा भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे उदित भया तम खीना।।
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Yeh aapka pura sanskrit me hai..lekin isme question kya hai..Vo toh pucha hi nahi hai..
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